नई दिल्ली। लोक सभा चुनाव के लिए आखिरी चरण का मतदान संपन्न होते ही विभिन्न न्यूज चैनलों और एजेंसियों ने अपने- अपने एग्जिट पोल जारी कर देश में प्रचंड बहुमत से मोदी सरकार बनने की भविष्यवाणी कर दी। पोल ऑफ पोल्स यानी औसतन एनडीए (बीजेपी प्लस) को 306, यूपीए (कांग्रेस प्लस) को 116 और अन्यों को 119 सीटें दी गई हैं। एक एजेंसी टुडेज चाणक्य ने तो बीजेपी प्लस को 350 तक सीटें दी हैं। ये एग्जिट पोल विपक्षी दलों के साथ- साथ बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों और वरिष्ठ पत्रकारों के भी गले नहीं उतर रहे हैं।
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने तो आरोप लगाया है कि ये एग्जिट पोल एक बड़ी साजिश है और इसे मोदी- शाह के दबाव में तैयार किया गया है ताकि EVM में छेड़छाड़ के लिए आधार बनाया जा सके।
विपक्षी खेमे से एक आरोप यह भी है कि ये एग्जिट पोल लगातार गोते खा रहे शेयर बाजर को थामने के लिए तैयार किए गए हैं। एग्जिट पोल के नजीते जारी होते ही संसेक्स में 1000 अंकों का उछाल आया है। तो क्या सचमुच शेयर बाजार के कुछ बड़े खिलाड़ियों को मतगणना से पूर्व अप्रत्याशित लाभ पहुंचाने के लिए यह खेल रचा गया है।
बदनाम हैं चुनावी सर्वेक्षक एजेंसियां- देश में वर्ष 2004 और उसके बाद हुए संसदीय चुनावों में न्यूज चैनलों के तमाम एग्जिट एवं ओपीनियन पोल बुरी तरह फेल साबित हुए हैं। वर्ष 2004 के संसदीय चुनाव में तो सारे एग्जिट पोल एनडीए की सरकार बना रहे थे, लेकिन सरकार यूपीए की बन गई। उसके बाद 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में भी एग्जिट पोल और वास्तविक नतीजों में भारी अंतर देखने में आया था, लेकिन रुझान नजदीक थे।
याद कीजिए, दिल्ली में जब आरंभ में आम आदमी पार्टी चुनाव में उतरी थी तो सभी चैनल इसे कुल 70 सीटों में से मात्र 5-7 सीटें दे रहे थे, लेकिन वास्तविक नतीजों में उसे 28 सीटें मिली और उसने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बना ली थी। उसके बाद हुए उपचुनाव में वहां तमाम चैनल आप पार्टी को 28 से 30 सीटें दे रहे थे, लेकिन मतगणना के बाद उसे 70 में से 67 सीटों का भारी बहुमत प्राप्त हुआ था। इसमें सबसे अधिक शर्मनाक बात यह है कि अनुमान गलत साबित होने पर किसी भी न्यूज चैनल और एजेंसी ने अपनी गलती के लिए जनता से माफी नहीं मांगी।