देहरादून। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की ‘अयोग्यता’ बरकरार रखी है। हाईकोर्ट ने स्पीकर के फैसले को मानते हुए बागी विधायकों को अयोग्य घोषित किया है। बागी इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीमकोर्ट भी गए, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। कांग्रेस के बागियों के साथ ही भाजपा के लिए भी यह एक बड़ा झटका है। उत्तराखंड विधानसभा में कल मंगलवार को अदालत के आदेश पर शक्ति परीक्षण होना है। कांग्रेस के नौ बागी भाजपा के साथ खड़े हैं, लेकिन अब वे वोट नहीं दे पाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड मामले पर तुरंत एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है, जिसमें अरुण जेतली, परिकर, राजनाथ सिंह, वेकैंया नायडू और नितिन गडकरी आदि शामिल हैं। भाजपा ने उत्तराखंड प्रकरण को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। भाजपा का प्रयास पहले कांग्रेस की हरीश रावत सरकार को गिराकर स्वयं सत्तासीन होने का था, लेकिन अदालत से लगातार झटके लगने के कारण अब यह प्रयास किसी भी कीमत पर कांग्रेस सरकार गिराने और वहां राष्ट्रपति शासन बरकरार रखने तक सीमित हो गया है।
उत्तराखंड में मंगलवार को 11 से एक बजे तक दो घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन हटाया जाएगा। इस दौरान निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत अदालत की निगरानी में शक्ति परीक्षण करेंगे। जीत हार का फैसला बाद में सुप्रीमकोर्ट ही सुनाएगा।
उल्लेखनीय है कि गत 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत-विभाजन की भाजपा की मांग का कांग्रेस के 9 विधायकों ने समर्थन किया था, जिसके बाद प्रदेश में सियासी तूफान पैदा हो गया और उसकी परिणति 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन के रूप में हुई थी। इस दौरान भाजपा का प्रयास रहा कि कांग्रेस के बागियों की संख्या नौ से बढ़ कर 12-13 हो जाए ताकि दल बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य घोषित न किया जा सके।
उत्तराखंड में 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 36 और भाजपा के पास 27 विधायक हैं। नौ विधायकों के अयोग्य घोषित हो जाने के बाद अब बहुमत के लिए 32 विधायकों की ही जरूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दावा है कि उनके पास अन्य 6 विधायकों द्वारा बनाए गए प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट (पीडीएफ) के सहयोग से पूर्ण बहुमत प्राप्त है।