देहरादून। उत्तराखंड में
फिलहाल भाजपा के 27 विधायक और कांग्रेस के बागी नौ विधायक गुड़गांव में एक पांच सितारा होटल में कड़ी निगरानी में हैं। उत्तराखंड के कई भाजपा नेताओं के अतिरिक्त पार्टी प्रभारी श्याम जाजू और महासचिव कैलाश विजय वर्गीय लगातार उनके संपर्क में हैं। जोड़- घटाव का खेल चल रहा है। राजनीतिक गलियारों में सवाल तैर रहे हैं कि क्या रावत सरकार गिर जाएगी? गिरेगी तो क्या भाजपा की सरकार बन पाएगी? यदि राज्यपाल शासन लगा तो फिर क्या भाजपा और विद्रोही विधायक हाथ मलते रह जाएंगे? माना जा रहा है कि इस घटनाक्रम में यदि राज्य में राज्यपाल शासन लगा तो इसे कांग्रेस से ज्यादा भाजपा की हार के रूप में ही ज्यादा देखा जाएगा। एक वर्ष बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इसे भाजपा के खिलाफ मुद्दा बना सकती है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ताजा बयान में कहा है, “विद्रोहियों में से कुछ लोग शीघ्र ही अपनी गलती मानते हुए लौट जाएंगे। उन्हें वापस स्वीकार कर लिया जाएगा।” उधर, भाजपाई खेमे में विद्रोही विधायकों की संख्या में वृद्धि की उम्मीद की जा रही है।
कांग्रेस के बागी मंत्री हरक सिंह रावत ने सफाई दी है कि, “हमने राज्य के हित में ही रावत सरकार से अगल होने का निर्णय लिया है। हम मुख्यमंत्री की मनमानी से तंग आ गए थे। राज्य में विकास कार्य ठप पड़ गया है और भ्रष्टाचार चरम पर है।” हरक सिंह रावत को मंत्रीपद से बर्खास्त कर दिया गया है और उनके कार्यालय पर ताला जड़ दिया गया है।
उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, “चुनावी राजनीति में लगातार पराजय के बाद भाजपा ने अब विधायकों की खरीद खरोख्त कर कांग्रेस की सरकारों को अस्थिर करने की रणनीति अपना ली है। इसने यह कार्य पहले अरुणाचल प्रदेश में किया और अब उत्तराखंड की बारी है। लोकतंत्र के लिए यह गंभीर खतरे का संकेत है।”
विधायकों की खरीद- फरोख्त की चर्चाओं के बीच कांग्रेस के एक विधायक गणेश गोंदियाल ने आरोप लगाया है कि भाजपा ने उन्हें और कुछ अन्य विधायकों को खरीदने की कोशिश की। वैब न्यूजपोर्टल ‘इंडिया वाइस’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार गणेश गोंदियाल ने कहा है कि भाजपा ने उन्हें 5 करोड़ रुपये की पेशकश की थी। इससे पूर्व हरीश रावत ने कहा था कि भाजपा की ओर से कांग्रेस विधायकों को विद्रोह के लिए 10- 10 करोड़ का आश्वासन दिया गया है।
उत्तराखंड में 71 सदस्यीय विधानसभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास 36 और भाजपा के पास 28 विधायक हैं। इसके अतिरिक्त बसपा के दो, चार अन्य और एक मनोनीत विधायक हैं। नौ विद्रोही विधायक यदि मतदान के लिए अयोग्य घोषित कर दिए जाते हैं तो सदन में विधायकों की संख्या 62 रह जाएगी। ऐसे में हरीश रावत को इसी संख्या में बहुमत साबित करना होगा।