चमोली (गोपेश्वर)। प्राकृतिक आपदा में ध्वस्त हुए पुल को बनाने की दिशा में लंबे इंतजार के बाद भी शासन-
दरअसल जून 2013 में अमृतगंगा के तेज बहाव में गोपेश्वर के निकट सिरोली गांव को जोड़ने वाला पुल टूट गया था, जिससे गांव के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे। गांव के लोग एक माह तक तो घरों में ही कैद रहे। पहले तो लोग प्रशासन की ओर टकटकी लगाए रहे, लेकिन जब वहां से कोई रिस्पांस नहीं मिला तो ग्रामीणों ने रस्सियों के सहारे नदी को आर-पार कर खाने-पीने का सामान एकत्रित किया। उसके बाद नदी का जलस्तर कम हुआ तो ग्रामीण किसी तरह एक-दूसरे का हाथ थामकर नदी पार कर अपना काम निपटाते रहे, लेकिन बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे।
इसी तरह पुल को बहे छह माह गुजर चुके थे। सरकारी मशीनरी अभी तक भी ग्रामीणों की सुध लेने नहीं पहुंची तो उन्होंने नदी पर स्वयं ही पुल बनाने की ठान ली। गांव के बूढ़े हो या बच्चे, युवक हो या युवतियां सभी ने श्रमदान कर अमृतगंगा पर पैदल पुल का निर्माण किया। अब इस पुल से सभी लोग आवागमन कर आसानी से गांव तक पहुंच रहे हैं।
स्थानीय वासी एवं दशोली के पूर्व प्रमुख भगत सिंह बिष्ट ने आरोप लगाया कि सरकार ग्रामीणों की घोर उपेक्षा कर रही है। प्राकृतिक आपदा के बाद गांवों में जन जीवन अस्त व्यस्त है, लेकिन कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा। सिरोली के ग्रामीण सुनील सिंह का कहना है कि गांव वाले एकत्रित होकर पुल का निर्माण न करते तो आज भी उन्हें नदी पार करने के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती।
सिरोली गांव में अमृतगंगा पर बहा पुल न केवल सिरोली गांव, बल्कि सती मां अनुसूया के पावन धाम अनुसूया मंदिर व अत्रि आश्रम तक पहुंचने के लिए भी एकमात्र विकल्प था। चमोली के लोगों ने लगातार इस धार्मिक स्थल तक पहुंचने के लिए पुल निर्माण की मांग उठाई, लेकिन प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
चमोली में लोक निर्माण विभाग के अधिशाषी अभियंता रमेश चंद्र पाल से इस संबंध में बात की गई तो उनका कहना था कि निदेशालय से एक टीम पुलों का सर्वेक्षण कर लौट गई है। अब टेक्निकल टीम आएगी और उसके बाद क्षतिग्रस्त पुलों के निर्माण के लिए डीपीआर तैयार की जाएगी।