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चीन में बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या बढ़ रही: दलाईलामा

धर्मशाला। मैकलोडगंज में बौद्ध मंदिर में तिब्बतियों के प्रमुख आध्यात्मिक गुरू दलाईलामा के दो दिवसीय प्रवचन कार्यक्रम में देश- विदेश से बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों ने भाग लिया। दलाईलामा ने बुधवार को चक्रसंवर अभिषेक की प्रारंभिक प्रक्रियाओं पर उपदेश दिया, जबकि वीरवार को बौद्ध धर्म से जुड़ी जातक कथाओं और बुद्धत्व पर प्रकाश डाला।

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दलाईलामा ने अपने अनुयायियों को चक्रसंवर अभिषेक की प्रारंभिक प्रक्रियाओं पर उपदेश देते हुए कहा कि बुद्धत्व सभी दोषों और बाधाओं से मुक्त, सभी गुणों से संपन्न अवस्था है। यह हमारे भीतर है और हम इसे आत्मज्ञान के मार्ग में बदल सकते हैं।

उन्होंने कहा कि चक्रसंवर के संबंध में घंटापद और लुइपा परंपराएं लोकप्रिय थीं, लेकिन यह कृष्णाचार्य वंश काफी दुर्लभ था। मैंने इसे तगडग रिंपोछे से प्राप्त किया। जहां तक इस अभिषेक का संबंध है, हम इसे उच्च पुनर्जन्म प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के साधन के रूप में लेते हैं। तंत्र का अभ्यास करने के लिए हमें एक देवता के रूप में स्वयं की स्पष्ट दृष्टि की आवश्यकता होती है। इसलिए हम अपने आप को एक साधारण प्राणी के रूप में देखते हैं और हेरुका या चक्रसंवर में परिवर्तित हो जाते हैं।

दलाईलामा ने बोधिचित्त के विकास के महत्व के बारे में उल्लेख किया कि यह चित्त की शांति लाता है। उन्होंने कहा कि वह बोधिचित्त उत्पन्न करते हैं और प्रतिदिन सुबह उठते ही शून्यता पर चिंतन करते हैं। वहीं, उन्होंने शांतिदेव के बोधिसत्व मार्ग में प्रवेश के ग्रंथ का वर्णन किया। यह ग्रंथ बोधिचित्त के गुणों और इसे विकसित करने के तरीकों को सबसे अच्छी तरह से स्पष्ट करती है।

उन्होंने कहा कि अभिषेक के आचरण में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने का प्रयास करते हैं, जबकि असली बाधा हमारे भीतर की अज्ञानता है। इसलिए शायद हम उन लोगों पर विचार कर सकते हैं, जो अपने वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ हैं। इसमें यह समझना शामिल है कि क्या आचरण अपनाना है और क्या त्यागना है। इसके द्वारा हम अपने आप को बदल सकते हैं।

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तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा ने प्रवचन के दूसरे दिन जातक कथाओं पर प्रवचन देते हुए दावा किया कि- “सामान्य तौर पर चीन एक बौद्ध राष्ट्र था। तिब्बत में रहते हुए मैं कई बार चीन गया। मैंने देखा कि वहां बहुत से बौद्ध विहार और मठ थे। इससे सिद्ध होता है कि महात्मा बुद्ध की सत्ता चीन में भी अच्छे से व्याप्त थी। आज भी चीन में बौद्ध धर्म में रुचि दिखाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।”

उन्होंने कहा कि चीन में परिवर्तन हो रहे हैं। राजनीति में भी परिवर्तन हो रहे हैं। पढ़े-लिखे और शोध करने वाले चीनी आज भी बता सकते हैं कि भारत में रह रहे तिब्बतियों की स्थिति अच्छी है। यह एक अच्छा संकेत है। आप भी एक से दस और फिर सौ लोगों तक बुद्ध के दर्शन को पहुंचाएं।

दलाईलामा ने कहा कि धर्म एक व्यक्ति का नहीं है। यह सभी लोगों के लिए है। केवल मुख से व्याख्या करने से लाभ नहीं होने वाला। रिंपोछे कहते भी हैं कि दूसरों के चित्त को शुद्ध करने से पहले, स्वयं धर्म का अभ्यास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। हमारा देश भले हमसे छूट गया हो, मगर बौद्ध संस्कृति और दर्शन के संरक्षण के लिए हम सभी ने उचित ध्यान दिया है। धर्मगुरु ने कहा कि दुख को समाप्त करने के लिए हमें अपने अंदर के क्लेश और स्वार्थ चित्त को खत्म करना होगा। शून्यता का अभ्यास करना चाहिए।

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हम स्वयं भी रोज जितना अधिक बौद्धि चित्त का अभ्यास करेंगे, उतना ही बेहतर होगा। सुख के लिए हमें परहित के बारे में ज्यादा सोचना होगा। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक तौर पर तिब्बत, मंगोलिया और अन्य देशों में बौद्ध धर्म और दर्शन बहुत अच्छे से फैला है। बीच में कुछ कमी आई। हालांकि इस कमी के बाद फिर से यह पुन: अच्छे से स्थापित हो रहा है। मंगोलिया और तिब्बत में बौद्ध धर्म एक एक बार फिर से तेजी से फल-फूल रहा है।

दलाईलामा ने कहा कि ल्हासा में अकसर पांच दिवसीय प्रार्थनाओं का आयोजन होता था। प्रार्थनाओं की यह परंपरा करीब डेढ़ हजार साल पुरानी है। प्रार्थनाओं के बाद जातक कथाओं पर प्रवचन दिया जाता था। पिछले कुछ वर्षों से तिब्बत में प्रार्थनाओं का आयोजन थोड़ा मुश्किल हुआ है, मगर बुद्ध की सत्ता को जीवंत रखने के लिए भारत में लोग एक विचारधारा के साथ पूरे जोश के साथ इसे अपनाते रहे हैं। निर्वासन के बावजूद हम सब अपने पूर्व के आचार्यों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

प्रवचन के दौरान दलाईलामा ने यह भी कहा कि- “बुद्ध की सत्ता के लिए मैंने पूरे उत्साह के साथ कार्य किया है। जहां-जहां लोग बुद्ध के विचारों को सुनना चाहते हैं और किसी कारणवश वहां नहीं पहुंच सके हैं, वहां तक बुद्ध के दर्शन को पहुंचाने के लिए प्रयास कर रहा हूं। यही कारण है कि लोग बौद्ध धर्म को स्वीकार कर रहे हैं। इससे जुड़े मनोविज्ञान में लोग रुचि दिखा रहे हैं।”

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एचएनपी सर्विस

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