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न्याय की राह ताकते एक पीढ़ी का अंत

भाखड़ा बांध विस्थापितों के शहर बिलासपुर में सरकारी उपेक्षा के चलते अनेक परिवार आधी सदी बीत जाने के बाद भी विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं। विस्थापितों की एक पीढ़ी तो सरकारों से अपना हक मांगते-मांगते इस संसार से विदा भी हो चुकी है और अब अगली पीढ़ी अपने हक के लिए जूझ रही है। ये लोग अभी भी अपने माता पिता के अवार्ड के दस्तावेजों को संभाल कर रखे हुए हैं और इनके सहारे सरकार का द्वार खटखटा रहे हैं, लेकिन हर ओर से मायूसी ही हाथ लग रही है।

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यहां रौड़ा सेक्टर में किराये की दुकान में जूतों की मुरम्मत करने वाले चूंका राम (65) का कहना है कि वह तब बहुत छोटा था जब उसके माता पिता का देहांत हो गया था। लोगों के घरों में वह पला और बड़ा हुआ। आज लुहणू में जहां खेल स्टेडियम बना है, वहीं उसके बुजुर्गों के घर थे। उसके गांव के अन्य लोगों को तो मकान के बदले प्लाट मिल गए, लेकिन उसे नहीं मिला। वह बध्यात गांव में नौतोड़ जमीन लेकर रह रहा है। अपने हक के लिए वह सरकारी दफ्तरों और अधिकारियों के पास चक्कर लगाता रहा, लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला।
धौलरा में नाहर सिंह मंदिर के पास सरकारी भूमि पर मकान बना कर रह रहे दो भाइयों शशिपाल और राकेश कुमार की भी यही कहानी है। बुजुर्गों के समय के सारे कागजात एक फाइल में संभाल कर रखे हुए शशिपाल बताते हैं कि पुराने बिलासपुर शहर के पास खैरियां में उनकी बीस बीघे पुश्तैनी जमीन थी, घर थे और एक घराट था। यह सब भाखड़ा बांध बनने के बाद गोबिंदसागर में डूब गए। उसके बाद उनके माता पिता ने धौलरा में बाबा नाहर सिंह मंदिर के पास खाली जमीन पर एक ढारा बनाया और गुजारे के लिए चाय आदि बना कर बेचने लगे। शशिपाल के अनुसार पुराने शहर में उनका घराट डूबा तो उसके बदले में रौड़ा डिस्पेंसरी के पास एक दुकान का प्लाट सरकार ने दिया। यह दुकान का प्लाट आज तक नहीं बन पाया, क्योंकि वह जगह मार्किट से काफी हट कर है। उन्हें जमीन के बदले न जमीन मिली और न रिहाइश के लिए प्लाट, जबकि अन्य लोगों को सब कुछ मिला। वे बुजुर्गों के समय से जहां रह रहे हैं, अब सरकार उस जमीन को भी खाली करने के लिए नोटिस दे रही है। कई बार डीसी से लेकर मुख्यमंत्री तक उनके दिवंगत पिता ने गुहर लगाई थी, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई।
शशिपाल और राकेश कहते हैं कि उनके पिता सीधे साधे अनपढ़ व्यक्ति थे। अपना हक लेने के लिए जो पत्राचार कर सकते थे वह किया। इसका सारा रिकार्ड उनके पास है। हैरानी इस बात की है कि उनके बुजुर्गों की 20 बीघा जमीन गोबिंदसागर झील में डूबी और उसके बदले रहने के लिए उन्हें एक प्लाट तक नहीं मिला।
बिलासपुर में शशिपाल, राकेश कुमार और चूंका राम की ही तरह और भी बहुत से लोग सरकारों के उपेक्षित रवैये के  चलतेअभी तक प्लाटों से वंचित हैं। जिन विस्थापितों को प्लाट नहीं मिले हैं, उनके लिए दो नए सेक्टर बनाने की बातें हर सरकार करती रही है, मगर यथार्थ के धरातल पर हुआ कुछ भी नहीं। विस्थापित आज भी अपने हकों के लिए सरकार की तरफ देख रहे हैं।
कांग्रेस के पूर्व विधायक तिलकराज शर्मा का कहना है कि पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार ने प्लाटों से वंचित भाखड़ा विस्थापितों के लिए निहाल में हिमाचल पथ परिवहन निगम की वर्कशाप के पास प्लाट देने की कोशिश की थी। इसके लिए भूमि का चयन करके पूर्व मुख्यमंत्री ने भूमि पूजन भी किया था। वहां 365 प्लाट आवंटित किए जाने थे। एचआरटीसी को उसकी एक्वायर की गई भूमि और भवन का 90 लाख रुपया मुआवजा भी दे दिया गया था। लेकिन इसी बीच पिछले विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लग गई और वो प्लाट विस्थापितों को आवंटित नहीं किए जा सके। तिलकराज शर्मा ने आरोप लगाया कि वर्तमान भाजपा सरकार ने सत्ता संभालने के बाद इस सारी प्रक्रिया को घटिया राजनीति में बदल कर विस्थापितों को प्लाट ही आवंटित नहीं किए। इसके लिए दलील दी गई कि विस्थापितों को कहीं और प्लाट दिए जाएंगे, लेकिन ऐसा कहीं भी होता नजर नहीं आ रहा है।
सेवा निवृत्त प्रोफेसर एवं लेखक घनश्याम गुप्ता कहते हैं कि यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें अभी तक उनकी जमीन के बदले जमीन या रिहायशी प्लाट नहीं मिले हैं। बुजुर्ग विस्थापन की पीड़ा सहते-सहते परलोक सिधार गए और अब नई पीढ़ी जूझ रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री रामलाल ठाकुर कहते हैं कि पूर्व वीरभद्र सरकार ने जिस तरह विस्थापितों को प्लाट देने की प्रक्रिया शुरू की थी उससे 365 भाखड़ा विस्थापितों को बिलासपुर शहर के बीच ही रिहाइशी प्लाट आवंटित होने थे। लेकिन इस सरकार ने सब गुड़ गोबर कर दिया। उन्होंने बताया कि बिलासपुर के लोग भाखड़ा विस्थापितों के नाम पर 1996-97 में बिलासपुर में भाजपाइयों द्वारा आयोजित की गई उस रैली को नहीं भूले हैं, जिसमें प्रो. प्रेम कुमार धूमल, जगत प्रकाश नड्डा और रिखीराम कौंडल आदि वक्ताओं ने भाखड़ा विस्थापितों की अगली पीढ़ी को भी विस्थापित घोषित करने की बात कही थी। उसके बाद धूमल दो बार मुख्यमंत्री और नड्डा मंत्री बने, लेकिन उन्होंने आज तक विस्थापितों की दूसरी पीढ़ी को तो क्या विस्थापित घोषित करना था, बल्कि पूर्व वीरभद्र सरकार द्वारा चयनित की गई भूमि में विस्थापितों को प्लाट तक आवंटित नहीं किए।
राजनेता चाहे कोई भी हों वो एक-दूसरी पार्टियों की आलोचना ही करते रहते हैं, लेकिन भाखड़ा विस्थापितों की पीड़ा का कोई समाधान नहीं हो रहा। वास्तव में कांग्रेस और भाजपा ने स्वार्थ की राजनीति के चलते पिछले कई दशकों से भाखड़ा बांध विस्थापितों की समस्याओं का समाधान होने ही नहीं दिया ताकि यह मुद्दा जिंदा रहे और वे लंबे समय तक इसका लाभ उठाते रह सकें।

हिम न्यूज़पोस्ट.कॉम

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