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लेखक किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता नहीं…

सरकार और उसके समर्थन में आए बन्‍धुओं ने जिस तरह से लेखकों और

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कलाकारों के विरोध पर हास्‍यास्‍पद रुख अपनाया है, उसके दूरगामी परिणाम होने स्‍वभाविक है। यह न केवल उसकी कमजोर राजनीतिक समझ थी, बल्कि देश से बाहर भी इसका गलत संदेश गया है। मोदी जी चाहते तो इस प्रतिरोध पर विनम्रता दिखा सकते थे, लेकिन उन्‍होंने शायद अपने सहयोगियों, जिनमें बहुत से लेखक, कलाकार, अनुपम खेर सहित नेतागण शामिल थे, के माध्‍यम् से इस अवसर को हमेशा के लिए गवां दिया है। हालांकि लेखकों के इस प्रतिरोध के कई दूसरे विकल्‍प भी हो सकते थे, लेकिन

लेखक, एस.आर. हरनोट विख्यात साहित्यकार एवं राजनीतिक- सामाजिक विषयों के टिप्पणीकार हैं।

यदि पुरस्‍कार वापसी का निर्णय उन्‍होंने लिया तो उसे कोई भी देशद्रोह की संज्ञा कैसे दे सकता है? इस पर जिस तरह की अपमानजनक टिप्‍पणियां हो रही हैं, क्‍या उससे देश को ही क्षति नहीं पहुंच रही? जेनुअन लेखन कभी भी किसी राजनीतिक पार्टी का प्रवक्‍ता नहीं रहा है। वह हमेशा आमजन का प्रवक्‍ता होता है जो सही को सही और गलत को गलत कहता है। जो लोग आए दिन नेताओं की जीवनियां लिखते रहते हैं, दरबारों में कविताएं सुनाते पढ़ते हैं या सत्‍तासुख के लिए हर सत्‍ता के साथ हो लेते हैं, वे कभी भी जेनुअन लेखक नहीं कहलाए गए।

सरकार ने लेखकों और कलाकारों के विरोध पर जैसा रूख दिखाया है, वह मूर्खतापूर्ण तो है ही, उसमें दूरदृष्टि का भी अभाव दिखता है। लेकिन अगर सरकार वैज्ञानिकों के साथ भी ऐसा ही करेगी तो इससे अफसोसनाक और कुछ नहीं हो सकता। अभी भी समय है मोदी जी को अपने देश की मिट्टी पर पैर रखने शुरू कर देने चाहिए, अन्‍यथा दिल्‍ली और बिहार तो सामने है ही।

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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