नई दिल्ली। पड़ोसी देश नेपाल ने अंततः पूर्ण रूप से लाल आवरण ओढ़ लिया। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) गठबंधन ने संसदीय और प्रांतीय चुनावों में जबरदस्त जीत दर्ज की है। लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहे नेपाल को इससे राहत मिल सकती है।
नेपाल में इस शानदार जीत के तुरंत बाद ही इन दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने आपस में विलय को लेकर भी चर्चाएं शुरू कर दी हैं। हालांकि जानकारों का मानना है कि विलय पर अमल आसानी से नहीं हो पाएगा। इसमें अभी काफी पेंच हैं।
कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन ने नेपाली संसद के निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) की 165 में से 116 पर जीत दर्ज की है। ये सभी एकल सीट वाले क्षेत्र हैं। यहां गठबंधन को 46.91 प्रतिशत वोट मिले हैं, जिससे आनुपातिक प्रतिनिधित्व वाली 110 सीटें तय होंगी। संसद के उच्च सदन (राष्ट्रीय सभा) की कुल 59 सीटें हैं, जिनमें से तीन सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करेंगे, जबकि बाकी सीटों का निर्वाचन सात प्रांतों से होगा, जिसमें छह सीटों पर कम्युनिस्ट गठबंधन ने जीत दर्ज की है और उसे प्रांतीय असेंम्बली की कुल 241 सीटें मिली हैं, जबकि 41 सीटें नेपाली कांग्रेस और 47 सीटें अन्यों को मिली हैं।
मधेसियों का विरोध नरमः नेपाल के तराई में रहने वाले मधेसियों के संगठनों में कम्युनिस्टों के प्रति विरोध भी इस बीच कुछ कम हुआ है। इस चुनाव में प्रमुख मधेसी पार्टियों- राष्ट्रीय जनता पार्टी और संघीय समाजवादी पार्टी ने एक- दूसरे को नुकसान पहुंचाया। पिछले दिनों चीन के राजदूत जब नेपाल आए थे तो मधेसी संगठनों के कुछ नेता भी अपने मुद्दे लेकर उनसे मिलने गए और वहां से कथित रूप से संतुष्ट होकर लौटे थे।
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरताः नेपाल में वर्ष 2008 में संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र नेपाल की स्थापना के बाद से देश विखंडित जनादेश के चलते अब तक 10 प्रधानमंत्री देख चुका है। इससे पूर्व माओवादियों के हिंसक आंदोलन ने भी देश में अशांति का माहौल बनाए रखा। वर्ष 2015 में आए भूकंप ने भी नेपाल को बुरी तरह तबाह किया।
भारत- नेपाल संबंधों पर नजरः नेपाल के संसदीय चुनावों के बाद सभी की नजरें भावी भारत- नेपाल संबंधों पर लगी हुई है। नेपाल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भारत से जुड़ा हुआ है। प्रमुख वामपंथी नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री- केपी ओली और पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड दोनों ही इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन चीन के साथ इनकी नजदीकियां भी किसी से छिपी नहीं है। शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस की निवर्तमान सरकार भारत समर्थक थी। क्या नेपाल की नई सरकार अपने दो ताकतवर पड़ोसी देशों भारत और चीन के साथ संतुलन बनाकर चल पाएगी?