देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगने के बाद समूचा मीडिया इसी से संबंधित खबरों तक सिमट कर रह गया है। सरकार भी हैरान है कि निशाना तो कालाबाजारियों और जाली नोट छापने वालों पर लगाया गया था, लेकिन मार आम निरीह जनता पर पड़ गई। रोती, कराहती, चीखती जनता की भीड़ बैंकों को घेरकर जमा हो गई। भूखे, प्यासे इन लोगों को न दिन को चैन है, न ही रात को। इनमें बीमार बूढ़ों से लेकर लाचार महिलाएं भी शामिल हैं, जो अपने बच्चों व बुजुर्जों को भगवान भरोसे छोड़ कर लाइन में लगी हुई हैं। टीवी चैनलों के पास पीड़ित रोते, बिलखते गरीबों की ढेरों कहानियां हैं। ऐसे में कार्टूनिस्ट भी क्यों पीछे रहने लगे। आप भी देखिए कार्टूनिस्टों की नजर में करंसी क्राइसिस