हमारे देश में जिन नेताओं और अफसरों पर दो चार करोड़ के भ्रष्टाचार या काले धन के आरोप हैं, उन्हें अत्यन्त दयनीय स्थिति में माना जाता है, जैसे हम बिग बाजार में किसी गंवई को पीठ में किल्टा लिए देखते हैं। ऐसे कालेधनियों को ‘भ्रष्टाचार के बिग बाजार’ में Average भी नहीं आंका जाता। जो सौ करोड़ में आते हैं उन्हें Good और जो हजार करोड़ी होते हैं उन्हें Very Good की नजरें नसीब होती हैं। जो लाख करोड़ के काले धन के कारोबार में हैं उन्हें Excellent और देश से बाहर के बैंकों में अरबों खरबों के खाताधारकों को Super Excellent खिताब से नवाजा जाता है।
पहले ईमानदार व्यक्ति का मान होता था और आज गुंडों, बदमाशों और काला बाजारियों का होता है। मोदी जी ने जो मुहिम चलाई है, उसके बाद जो भी पकड़े गए या जिन्होंने नदी नालों में नोटों की थैलियां बहाईं, वे इस Average की श्रेणी में आते हैं, जिनकी प्रतिशतता शून्य भी नहीं होगी। Good और Very Good से उपर Super Excellent की श्रेणी वाले तो कभी पकड़ में न आए हैं और न ही आएंगे। वे मजे से इसी हो हल्ले के बीच शादी व्याहों में करोड़ों रुपये बहा देंगे, असंख्य बेनाम सम्पत्तियों के मालिक हैं, सोने चांदी से घर भरे रहते हैं, उन तक न कोई पहुंच पाया है, न पहुंच पाने की किसी की हिम्मत होती हैं।
इन दिनों रोज इसी तरह के तमाशे हो रहे हैं। जो चपलों, मफलरों और साइकिलों पर हो हल्ला कर रहे हैं। मुझे तो लगता है वे Super Excellent हैं, जिनका काला धन, सम्पत्तियां और अन्य धन जमा के स्त्रोत कभी न सामने आएंगे, न ही उन पर हाथ डाला जाएगा। बैंकों में जो जमा हो रहा है, वह काला धन नहीं कहा जा सकता है, वह बुरे समय के लिए रखा वह धन है, जिस पर थोडा बहुत टैक्स बचाने का लालच होता है। इसी को बचाने के चक्कर में उन लोगों ने तकरीबन तकरीबन अपना सारा पैसा सफेद कर लिया है। बैंकों की मिली भगत से, जो पुराने नोट ले रहे हैं उनसे थोड़ा सोना चांदी खरीद कर और अपने तमाम नौकरों के ‘जन धन’ योजना में खुले खातों में डाल-डाल कर।
इसमें जो आमजन है वह अभी भी अपने ही जेनुअन धन-पैसे को लेने के लिए लम्बी कतारों में लाइन में लगा है, मर रहा है, किसी की बेटियां नहीं ब्याही जा रहीं, किसी को मजदूरी नहीं मिल रही, कोई अपने खेतों में बैठा सिर धुन रहा है आदि आदि। और मजे की बात है कि यही आमजन तय कर रहा है कि यह निर्णय कितना अच्छा या बुरा है या होगा, क्योंकि वह भ्रष्टाचार से चारों तरफ से घिरा हुआ है। अव्यवस्था से रोज दो चार हो रहा है। उसे ऐसे निर्णयों में बहुत उम्मीद दिखती है, अच्छे दिन दिखते हैं।
मोदी जी जल्दबाजी में हैं, उनके दिमाग में जो है उसे वह बहुत जल्दी देश पर लागू करना या थोपना चाहते हैं। निर्णय अच्छे हैं, लेकिन वही परेशानियां निर्मित कर रहे हैं। जो काला धन पुलिस पकड रही है, जलाया जा रहा है या नदी नालों में बहाया जा रहा है, कितना अच्छा होता कि इसके लिए कोई ऐसा प्रबन्ध होता कि यह पैसा सीधा ऐसे खातों में जाता जिससे देश का भला होता, किसानों के कर्ज माफ होते, बेघरों को घर मिल जाते। इसके लिए सुपर हाईटेक मोदी सरकार यदि बीच का रास्ता निकाल लेती तो सांप भी मर जाता और लाठी भी न टूटती—। मुझे आज भी लगता है कि जो सौ, हजार, व लाख करोडपति हमारे देश में हैं उनके लिए सबसे सुरक्षित जगह ‘सरकार’ ही होती है, संसद होती है, कम्पनियां होती हैं, उनका न तो कोई कुछ आज तक बिगाड़ पाया है और न बिगाड सकता है। कितने स्कैम हुए, पकडे गए, नेता और दूसरे ऐसे लोग अन्दर भी हुए, लेकिन अदालत और कानून उनके लिए ‘सुरक्षा कवच’ बनते गए। वे या तो जमानतों पर बाहर हैं या कोर्ट में पेशियों तक सीमित हैं। काला धन व देश का पैसा न सरकार और बैंक को मिला है और न ही मिलने की उम्मीद है। जितना धन पकड़ा जाता है, वह इसी चक्कर में पुलिस थानों में सड़ता गलता रहता है। किसी से कोई रिकवरी नहीं होती। आमजन बस तमाशा देख देख कर खुश होता रहता है, वोट देता रहता है इसी उम्मीद में कि कभी तो अच्छे दिन आएंगे। ये प्रश्न मन में उठते हैं। पता नहीं आप इस पर क्या सोचते होंगे।