शिमला। हिमाचल प्रदेश में अब सरकार और विपक्षी दलों के चैन से बैठने
यह अनायास नहीं है जो धर्मशाला में विधानसभा का शीतकालीन सत्र इस बार केवल राजनीतिक कार्यकलापों का ही मंच बन कर रह गया था। सदन के भीतर कुछ नहीं हुआ, लेकिन बाहर बहुत कुछ हुआ। दोनों ही प्रमुख दलों- कांग्रेस व भाजपा ने एक- दूसरे पर प्रहार करते हुए रैलियां कीं। सरकारी खर्चे पर साथ गया मीडिया भी इन्हीं की रिपोर्टिंग में काम आया। तपोवन में स्थित इस विधानसभा परिसर को पहले ही सफेद हाथी करार दिया जा चुका है। यहां शीतकालीन सत्र के नाम पर इस बार भी आम जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये का अपव्यय हुआ।
यह सभी जानते हैं कि इस बार वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारने के लिए कड़ी मेहनत की गई है। विरोधी हैरान हैं कि इस सब के बावजूद मुख्यमंत्री अपनी सरकार की तीसरी वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। शेष दो वर्षों में क्या होगा, इसकी सटीक भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, लेकिन विरोधियों के पस्त हौसलों से कुछ अंदाजा अवश्य लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री के खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति मामले की स्थिति अभी भी वही बनी हुई है जो केस दर्ज होने के समय थी। सीबीआई और ईडी की छापेमारी के बावजूद इसमें कोई नए साक्ष्य नहीं जुड़ पाए हैं।
इसी बीच उत्साह में वीरभद्र सिंह ने चुनावी तैयारियों के लिए अपने पत्ते भी खोलकर सामने रख दिए। पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल से निपटने के लिए इस बार वे केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा का सहारा लेंगे। तपोवन में कांग्रेस की रैली में वीरभद्र सिंह ने एक बार फिर से कहा, “नड्डा को आगे बढ़ना है तो धूमल का साथ छोड़ना होगा।” इससे कुछ दिन पूर्व भी उन्होंने ने नड्डा को एक तरह से आमंत्रण सा देते हुए कहा था, “जेपी नड्डा भी प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं।” मुख्यमंत्री के इस पैंतरे से धूमल खेमे में खलबली मची हुई है। इसके तुरंत बाद ही धूमल- वीरभद्र की बंद कमरे में हुई बैठक को भी इसी खलबली का परिणाम माना जा रहा है। धूमल बखूबी जानते हैं कि वीरभद्र इस खेल के पुराने खिलाड़ी हैं। पिछले विस चुनाव में उन पर शांता कुमार से सहयोग प्राप्त करने का आरोप लगा था। वैसे भी मुख्यमंत्री पद के लिए नड्डा की महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने प्रदेश में बिना किसी धार्मिक उन्माद या असहिष्णुता का सहारा लिए सामान्य ढंग से सरकार बनाई व चलाई थी। लेकिन आज राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की राजनीति का स्वरूप बदला हुआ है। ऐसे में केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा प्रो. धूमल के लिए चुनौती बन सकते हैं। हाईकमान चाहे या ना चाहे, नड्डा प्रदेश में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी जताने से नहीं रुकेंगे। वीरभद्र सिंह को खेल खेलने के लिए इतना ही काफी है।
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