मछलियों को अचेत करने के लिए टिमरू के तने की छाल से बनाए गए चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।हानिकारक ब्लीचिंग पाउडर या अन्य रसायनों के प्रयोग पर सख्त मनाही है। टिमरू के चूर्ण से मछलियां मात्र कुछ समय के लिए ही बेहोश होती हैं। इस दौरान इन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है। जो मछलियां छूट जाती हैं, वे बाद में स्वयं ठीक हो जाती हैं।
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देहरादून। उत्तराखंड में रियासत काल से एक ऐसा त्यौहार भी मनाया जाता है, जिसमें हजारों को संख्या में लोग एक साथ मछलियों का शिकार करते हैं। देहरादून जनपथ के तहत अगलाड़ नदी में हर वर्ष होने वाले इस आयोजन को मौण उत्सव का नाम दिया गया है। इस वर्ष यह 27 जून को मनाया जाएगा, जिसके लिए दो माह पूर्व से ही तैयारियां जोरों से शुरू हो गई थी।
अगलाड़ नदी में इस उत्सव की शुरुआत टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने की थी। बीच में आपसी विवाद के चलते यह मेला कुछ समय तक बंद भी रहा, लेकिन वर्ष 1949 में इसे फिर से शुरू कर दिया गया। इसे मछलियों का प्रजनन काल पूरा हो जाने पर मनाया जाता है। स्थानीय लोग बाकायदा बैठक कर मेले की तारीख तय करते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उत्सव मॉनसून के दस्तक देने के बाद ही आयोजित किया जाए ताकि नदी में पर्याप्त पानी हो।
उत्सव की विशेषता यह है कि इसमें मछलियों को अचेत करने के लिए टिमरू के तने की छाल से बनाए गए चूर्ण का प्रयोग किया जाता है। यह चूर्ण जलीय जीवों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। हानिकारक ब्लीचिंग पाउडर या अन्य रसायनों के प्रयोग पर सख्त मनाही है। टिमरू के चूर्ण से मछलियां मात्र कुछ समय के लिए ही बेहोश होती हैं। इस दौरान इन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है। जो मछलियां छूट जाती हैं, वे बाद में स्वयं ठीक हो जाती हैं। औषधीय गुणों वाले टिमरू के तने को दांतुन और अन्य औषधियों में भी प्रयोग किया जाता है।
इस बार भी नौण उत्सव की तैयारियों के लिए लालूर पट्टी के आठ गांवों के लोगों ने बैठक की और 27 जून की तिथि उत्सव के लिए निर्धारित की। मौण उत्सव के लिए दो माह पूर्व ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोग टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करते हैं। फिर तनों को हल्के आग में गर्म कर उनकी छाल निकाली जाती है और फिर उसे सुखा कर ओखली या घराट में पीस कर बारीक चूर्ण (मौण) बनाया जाता है।
उत्सव के दिन इस मौण को अगलाड़ नदी में मौणकोट नामक स्थान में पानी में मिलाया जाता है। इसके साथ ही आगे बहाव की ओर हजारों की संख्या में बच्चे, युवा एवं वृद्ध मछलियां पकड़ना शुरू कर देते हैं। यह सिलसिला नदी में आगे चार किलोमीटर तक चलता है। जो मछलियां छूट जाती हैं वे बाद में पानी साफ हो जाने पर स्वयं ठीक हो जाती हैं। इस बार उत्सव में दस हजार लोगों के भाग लेने की उम्मीद है।