देहरादून। तांत्रिकों, पंडितों के इस कुष्प्रचार कि धन की देवी लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू की बलि से बहुत प्रसन्न होती है, इन दिनों उल्लुओं की शामत आई हुई है। वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) ने उत्तराखंड समेत उत्तर भारत में उल्लुओं के शिकार को लेकर अलर्ट जारी कर दिया है। वन महकमों से कहा गया है कि वे वनों के साथ उन अड्डों पर भी विशेष निगरानी रखें जहां पक्षियों का व्यापार होता है। उत्तराखंड में भी दिवाली की पूर्व संध्या पर लक्ष्मी को खुश करने के लिए हजारों उल्लुओं की बलि दी जाती है।
हर साल हजारों उल्लू हिमालय की तराई, मध्यप्रदेश, बिहार और पूर्वांचल के जंगलों से पकड़ कर लाए जाते हैं और धनवान होने के इच्छुक लक्ष्मी के उपासकों को महंगे दामों पर बेचे जाते हैं। दिवाली से पूर्व के दिनों में उल्लुओं का शिकार एकाएक बहुत बढ़ जाता है और उनकी कीमत भी 25 हजार से लेकर 80 हजर रुपये तक पहुंच जाती है। दुनियाभर में उल्लुओं की लगभग 216 प्रजातियां हैं, जिनमें से 32 भारत में मिलती हैं। उत्तराखंड में उल्लू की लगभग 19 प्रजातियां पाई जाती हैं। लक्ष्मी के अंध प्रेमियों के कारण आज इनका अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है।
डब्ल्यूसीसीबी के उपनिदेशक (उत्तर क्षेत्र) निशांत वर्मा बताते हैं कि- “तंत्र-मंत्र के लिए उत्तराखंड में भी बड़ी संख्या में उल्लुओं की बलि दी जाती है। यहां इस मामले में देहरादून, हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, हरिद्वार आदि इलाके बेहद बदनाम हैं। यही नहीं मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ आदि से भी उल्लुओं की आपूर्ति उत्तराखंड के लिए की जाती है। इसलिए उत्तराखंड वन विभाग को कहा गया है कि वह अभी से विशेष सतर्कता बरतना शुरू कर दे। सीमाओं पर भी चौकसी की जरूरत है।”
जानकारों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी गुपचुप रूप से कई जगह उल्लुओं की मंडी लगती है। वहां लालकिले के सामने, जामा मस्जिद के पीछे, मूलचंद फ्लाईओवर, मिंटो ब्रिज, महरौली- गुड़गांव रोड और आईएनए मार्किट में उल्लुओं का खूब कारोबार होता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार उल्लू धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है। पता नहीं कैसे तांत्रिकों, पंडितों ने इसमें यह भी जोड़ दिया कि लक्ष्मी अपने ही वाहन की बलि पसंद करती है। बस इसी कुप्रचार के कारण अब उल्लुओं की जान पर बन आई है। दीपावली की पूर्व संध्या पर हजारों उल्लुओं की बलि दी जाती है।