शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत मजदूर विरोधी पांच अध्यादेशों के खिलाफ मजदूर संगठन सीटू 15 सितम्बर को विधानसभा पर हल्ला बोलेगा। सीटू ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर इन अध्यादेशों को वापिस नहीं लिया गया तो मजदूर सड़कों पर प्रदेशव्यापी आंदोलन छेड़ेंगे।
सीटू के प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने एक प्रेस बयान में कहा कि कोरोना संकट काल को सरकारें मजदूरों का खून चूसने में इस्तेमाल कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके प्रदेश में काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया है। इस से एक तरफ एक-तिहाई मजदूरों की भारी छंटनी होगी, वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को चौदह श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। उद्योगपतियों द्वारा कानूनों की अवहेलना करने पर उसका चालान नहीं होगा व उन्हें खुली छूट दी जाएगी। मजदूरों को ओवरटाइम काम करने के लिए बाध्य करने से बंधुआ मजदूरी की स्थिति पैदा होगी। ठेका मजदूर अधिनियम 1970 में बदलाव से हजारों ठेका मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। इस से ठेकेदारों व स्थापनाओं को खुली छूट मिल जाएगी।
उन्होंने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मजदूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा। हड़ताल करने पर उन्हें दण्डित किया जाएगा। वहीं दूसरी ओर मजदूरों की छंटनी की पक्रिया आसान हो जाएगी व उन्हें छंटनी भत्ते से भी वंचित होना पड़ेगा। तालाबंदी, छंटनी व ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएंगी। इन बदलावों से हिमाचल प्रदेश के 73 प्रतिशत मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे, क्योंकि यहां पर ज़्यादातर उद्योग माइक्रो, स्मॉल व मीडियम एंटरप्राइज हैं। मॉडल स्टेंडिंग ऑर्डरज़ में तब्दीली करके फिक्स टर्म रोज़गार को लागू करने से मजदूरों को केवल तीन अथवा छः महीने तक नौकरी पर रखा जाएगा व उनके 240 दिन पूरे न होने के कारण उन्हें मजदूर का दर्ज़ा देने से ही महरूम कर दिया जाएगा। इस से मजदूर छंटनी भत्ता, ग्रेच्युटी, नोटिस पे, श्रम विभाग के तहत समझौता वार्ता जैसी प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे।
सीटू नेताओं ने कहा कि न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 की धारा 18 के तहत मेंटिनेंस ऑफ रिकोर्डज़ एन्ड रजिस्टर्ज़ को कमज़ोर करने से श्रमिकों की पूरी सामाजिक सुरक्षा खत्म हो जाएगी व मालिक मजदूरों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखेंगे। वे किसी भी हादसे की स्थिति में उनसे अपना पल्ला झाड़ लेंगे। उन्होंने सरकार से श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलावों पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है।