धर्मशाला (पालमपुर)। क्या एक गाय अपने जीवनकाल में सौ बछड़े- बछड़ियां पैदा कर सकती है? जी हां, यह बात किसी के लिए भी आश्चर्यजनक हो सकती है, लेकिन आधुनिक तकनीक से यह न केवल संभव है, बल्कि शीघ्र ही आपके हिमाचल प्रदेश में भी इसका असर देखने को मिल सकता है। प्रदेश के पशुपालन विभाग ने विदेशों से आधुनिक भ्रूण प्रत्यारोपण यह तकनीक (एम्ब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी) आयात की है और इस पर काम शुरू कर दिया गया है।
इस प्रौद्योगिकी से गाय में अनुवांशिक बदलाव कर उसे सौ बछड़े-बछड़ियां पैदा करने के योग्य बनाया जा सकता है। इससे उनमें दूध देने की क्षमता भी बढ़ेगी। तकनीकि जानकार इसे अभी से प्रदेश में स्वेत क्रांति का आगाज मान रहे हैं। सड़कों व खेतों में लोगों के लिए मुसीबत बन चुकी लावारिस गायों की संख्या में भी इससे कमी आएगी।
पशु पालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. बीआर भारद्वाज ने मीडिया को बताया कि विभाग ने इसके लिए जर्मनी में प्रशिक्षित दो चिकित्सकों को तैनात किया है। छह अन्य पशु चिकित्सकों को भी देश के विभिन्न भागों में प्रशिक्षित किया गया है। अभी तक इस तकनीक से पालमपुर में दो बछड़ियां विकसित की गई हैं। इनमें एक बछड़ी पशुपालन विभाग की पालमपुर डेयरी में पल रही है।
यह है विधिः भ्रूण प्रत्यारोपण प्रौद्योगिकी (एम्ब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी) में स्वस्थ गाय के गर्भ में उन्नत तकनीक के माध्यम से एक से अधिक भ्रूण पैदा किए जाते हैं। इस गाय को डोनर मानकर इसी दौरान गर्भधारण के लिए तैयार कम दुग्ध क्षमता की सेरोगेट गाय के गर्भ से असली भ्रूण निकालकर उस भ्रूण का प्रत्यारोपण किया जाता है। इससे पैदा होने वाली स्वस्थ बछड़ी को विभागीय चिकित्सकों की देखरेख में अनुवांशिक बदलाव के लिए सुरक्षित किया जा रहा है। पैदा होने वाले बछड़े-बछड़ी को सीमन स्टेशन में भेज कर उन्नत किस्म के टीके तैयार करने में प्रयोग किया जाएगा।
भ्रूण प्रत्यारोपण प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला में कार्यरत जर्मनी से प्रशिक्षित डॉ. संदीप मिश्रा के अनुसार विभाग की ओर से रेड सिंधी गाय पर किया गया प्रयोग सफल रहा है। अब जर्सी, माहीवाल व अन्य सुधरी किस्मों की गायों पर परीक्षण किए जाने की प्रस्तावना है।
पालमपुर व सोलन में प्रयोगशालाएं- विदेशों से लाई गई तकनीक को प्रदेश में शुरू करने के लिए पालमपुर के बनूरी में चार करोड़ रुपये की लागत से भ्रूण प्रत्यारोपण प्रयोगशाला का निर्माण किया गया है। एक प्रयोगशाला सोलन जिला के कोटलानाला में भी निर्मित की गई है।
श्वेत क्रांति का आगाजः डॉ. बीआर भारद्वाज ने बताया कि अनुवांशिक बदलाव वाली गायों को पहले विभाग की ओर से संचालित डेयरियों में को रखा जाएगा। बाद में दूध देने के काबिल होने पर इन्हें किसानों को भी वितरित किया जाएगा। उन्होंने भले ही यह प्रौद्योगिकी महंगी और धीमी गति वाली है, मगर कुछ साल बाद इसमें गति आएगी और इससे प्रदेश में श्वेत क्रांति का आगाज होगा।
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