दिल्ली की दीवारों पर केंद्र सरकार के खिलाफ एक पोस्टर लोगों का जबरदस्त तौर पर ध्यान खींच रहा है। पोस्टर में लिखा है- केंद्र सरकार कांग्रेस और सोनिया गांधी को क्यों बचा रही है? पोस्टर लगाने वालों का नाम पता नहीं है। दिल्ली में इस तरह के आरोप अरविन्द केजरीवाल ही लगाते रहे हैं। इसलिए इन पोस्टरों का संबंध आम आदमी पार्टी से ही माना जा रहा है।
वैसे यह भी सही है कि देश में पूर्व कांग्रेस सरकार के समय के घोटालों, इसमें चाहे राष्ट्रमंडल घोटाला हो, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, अगस्ता घोटाला हो या फिर रावर्ट बढेरा प्रकरण, इनके अभियुक्त आज भी न केवल खुलेआम घूम रहे हैं बल्कि चोर मचाये शोर, चोरी व सीनाजोरी की तर्ज़ पर बेशर्मी भी दिखा रहे हैं। दो वर्ष का समय कम नहीं होता है, इन दो वर्षों में यदि जांच पूरी कर दोषियों को सजा दिलाने की दिशा में कुछ भी हुआ होता तो जनता को भी लगता कि सरकार अपने वायदे के अनुरूप कुछ कर रही है। ऐसे में इस पोस्टर को आप गलत नहीं ठहरा सकते। आज जनता वास्तव में ही जानना चाह रही है कि असलियत क्या है? जिस तरह से पूर्व सरकार के भ्रष्टाचार के मामलों को महज बहसों, बयानबाजियों तक सीमित रखा जा रहा है, उससे जनता का धैर्य जवाब देता जा रहा है। ये पोस्टर भी उसी का नतीजा हैं।
बहुचर्चित अगस्ता हेलिकॉप्टर घोटाले को ही ले लीजिये, इस पर संसद में लेकर सड़क तक जबर्दस्त बहस छिड़ी हुई है। लेकिन गौर से देखने पर इस मामले केंद्र सरकार की ओर से मात्र बयानबाजियों से सियासी हिसाब चुकता करने की ही कवायद ज्यादा दिखती है, बजाए इसके कि असली दोषियों को बेनकाब किया जाता। एक विदेशी अदालत के फैसले में मौजूद सांकेतिक टिप्पणियों को आधार बनाकर सरकार विपक्ष पर टूट पड़ी है, लेकिन सख्ती से जांच आगे बढ़ाने से गुरेज किया जा रहा है।
इस मामले में हमारी खुफिया एजेंसी सीबीआई पिछले दो वर्षों से क्या कर रही है? कितने लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई या आरोप तय किए गए? कितनों पर अदालत में केस शुरू होने वाले हैं? जांच में देरी के क्या कारण हैं? ये सारे विषय चर्चा में आने ही नहीं दिए जा रहे हैं। बहस राज्यसभा में क्यों कराई गई, यह भी समझ से परे है, क्योंकि जो नेता निशाने पर हैं, उनमें से ज्यादातर लोकसभा में हैं। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस ने भी सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में तीन महीने के अंदर जांच पूरी कर अगले सत्र में रिपोर्ट पेश करने की चुनौती देकर सरकार पर प्रतिकार किया है।
अगर सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर वाकई गंभीर है तो उसको यह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए। अगर उसे पक्का भरोसा है कि विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं ने रिश्वत ली है, तो वह जांच कर उन्हें सजा दिलाए। लेकिन ऐसा लगता नहीं है। संकेत तो यही हैं कि सरकार की रुचि कुछ करने से ज्यादा माहौल गर्माए रखने में ही है। चूंकि नरेंद्र मोदी की सरकार आई ही भ्रष्टाचार और कालाधन जैसे मुद्दों पर कुछ ठोस करने के वादों पर है। लिहाज़ा यही अवसर है कि वो संजीदगी से काम करते हुए देश को लूटने वालों को बेनकाब करे। अन्यथा ब्लैकमनी के मुद्दे पर बैकफुट में चल रही मोदी सरकार पर कहीं अगस्ता मामले में भी प्रश्नचिन्ह न लग जाये…।
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