कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 – 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे। उनका जन्म 5 मई, 1818 को त्रेवेस (प्रशा) में एक यहूदी परिवार में हुआ। मार्क्स ने जर्मनी के मजदूर संगठन और ‘कम्युनिस्ट लीग‘ के निर्माण में सक्रिय योगदान दिया और 1847 में एजेंल्स के साथ ‘अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद‘ का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो) प्रकाशित किया। ‘वर्ग संघर्ष‘ का सिद्धांत मार्क्स के ‘वैज्ञानिक समाजवाद‘ का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उन्होंने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएं कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। विश्व की आम मेहनतकश जनता के लिए लंबा संघर्ष करते हुए 14 मार्च, 1883 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
प्रस्तुत हैं कार्ल मार्क्स के दस प्रमुख सूत्र वाक्यः
- पूंजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है।
- हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार, हर किसी को उसकी जरूरत के अनुसार।
- दुनिया भर के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है सिवाये अपनी जंजीरों के।
- महान सामाजिक बदलाव महिलाओं के उत्थान के बिना असंभव हैं।
- मानव मस्तिष्क जो न समझ सके, धर्म उससे निपटने की नपुंसकता है।
- सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
- जरूरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाए, आजादी जरूरत की चेतना होती है।
- लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता है- धर्म का अंत।
- कंजूस एक पागल पूंजीपति है, पूंजीपति एक तर्क संगत कंजूस।
- धर्म लोगों के लिए अफीम की तरह है।
प्रस्तुतिः एचएनपी सर्विस