आचार्य रजनीश ‘ओशो’ (11 दिसम्बर1931- 19 जनवरी 1990) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। वे अनुयायियों में 1960 के दशक में ‘आचार्य रजनीश’ और 1970- 80 के दशक में भगवान रजनीश नाम से चर्चित हुए। ओशो एक आध्यात्मिक गुरु थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गांधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्मं पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया था। अपनी देशनाओं में उन्होंने संपूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधाराओं को नवीन अर्थ दिया। ओशो का 19 जनवरी 1990 को पुणे में निधन हुआ।
आप भी पढ़ें ओशो के दस प्रमुख सूत्र वाक्यः
1. कोई व्यक्ति चाहे पूरे जगत को जान ले, लेकिन यदि वह स्वयं को नहीं जानता है तो वह अज्ञानी है।
2. जब प्यार और नफरत दोनों ही न हो, हर चीज साफ और स्पष्ट हो जाती है।
3. किसी से किसी भी तरह की स्पर्धा की आवश्यकता नहीं है, आप स्वयं में जैसे हैं एकदम सही हैं, खुद को स्वीकार करिये।
4. सवाल ये नहीं कि कितना सीखा जा सकता है, सवाल ये है कि कितना भुलाया जा सकता है।
5. ठोकरें खाकर भी न संभले तो मुसाफिर का नसीब, वर्ना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया है।
6. जिंदगी में आप जो करना चाहते हैं, जरूर करिये, ये मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे। लोग तो तब भी कुछ कहते हैं जब आप कुछ नहीं करते।
7. अधिक से अधिक भोले, कम ज्ञानी और बच्चों की तरह बनिए, जीवन को मजे के रूप में लीजिए, क्योंकि वास्तव में यही जीवन है।
8. प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, प्रेम का फूल मौन में खिलता है। प्रेम संगीत है, प्रेम अंतरनाद है, प्रेम ही अनाहद नाद है।
9. जीवन कोई त्रासदी नहीं है, ये एक हास्य है, जीवित रहने का मतलब है हास्य का बोध होना।
10. यहां कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है, यहां हर कोई अपनी तकदीर बनाने में लगा है।
प्रस्तुतिः एचएनपी सर्विस