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यह नरेश की नाकामी नहीं, सिस्टम का खोट है…

मंडी जिला में जोगिंद्रनगर के चलारघ गांव के एक युवक नरेश कुमार ने घर में अपनी डिग्रियां जलाने के बाद खुद पर तेल छिड़ककर आग लगा ली। टांडा मेडिकल कालेज में उसकी मौत हो गई। यह युवक नौकरी न मिलने से परेशान था। जैसा कि परिजनों का दावा है कि करीब पंद्रह साल तक उस युवक ने कई लिखित परीक्षाएं भी पास कीं। पर इंटरव्यू में बाहर हो जाने के कारण नौकरी नहीं लगी। कोई कितना इंतजार करता? पंद्रह साल बहुत होते हैं। कोई मरना नहीं चाहता। इससे पहले भी कई नरेश बेरोजगारी के कारण इस दुनिया से चले गए होंगे। पता नहीं क्यों, 

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कोई यह मानने को तैयार ही नहीं है कि बेरोजगारी के कारण युवक आत्महत्याएं कर रहे हैं। दुर्भाग्य है, ऐसे मामले प्रेम प्रसंगों से जोड़ दिए जाते हैं। बहुत देर हो रही है, पर क्या करें? इस गंभीर होती समस्या पर मंथन के लिए किसी के पास समय ही नहीं है। बेरोजगार करें भी तो क्या? सरकारें स्वरोजगार का रोना रोती हैं, पर यह इतना आसान भी कहां है। कोई बात नहीं नरेश जी ! यह आपकी नाकामी नहीं, सिस्टम का खोट है। उस लोकतांत्रिक ढांचे का फेलियर है, जिसका डंका हम देश -दुनिया में बजाते फिरते हैं।

बेरोजगारी आज सबसे बड़ी समस्या है। बेरोजगारी के कारण ही आतंकवाद, क्राइम और नशे का चलन बढ़ रहा है। इस पर मैं लिखता रहा हूं। बेरोजगारी और दूसरी बड़ी समस्याओं को लेकर लिखी गई मेरी किताब बेरोजगार की आखिरी रातमें यही सवाल उठाए गए हैं। करीब डेढ़ साल पहले अमेरिका के ऑथर हाउस पब्लिशर ने उसे छापा था। हिंदी में होने के बावजूद इस किताब को अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, जांबिया, जापान और यूरोप के लगभग सभी देशों की बेवसाइट्स ने चलाया था। इस पर दुनिया भर से संदेश आए थे। यूजीसी नई दिल्ली, कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी और आस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी ने प्रतिक्रियाएं (बधाई) दी थीं। पाक अधिकृत कश्मीर की मुजफ्फराबाद यूनिवर्सिटी ने इस किताब की उर्दू या अंग्रेजी में डिमांड की थी। उनकी यह डिमांड पूरी करना संभव नहीं था। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से जोश भरने वाला संदेश भेजा था। एशिया का नोबल प्राइज देने वाली फिलीपींस की मेगसायसाय फाऊंडेशन की प्रतिक्रिया भी आई थी।

हाल ही में हिमाचल सरकार का पत्र मिला। पढ़कर अच्छा लगा। इसमें श्रम एवं रोजगार विभाग के प्रधान सचिव ने बेरोजगार की आखिरी रातकिताब का संज्ञानलेते हुए श्रम आयुक्त को पत्र लिखकर इस संदर्भ में आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है। उनकी पहल स्वागत योग्य है। पर बेरोजगारी दूर करना श्रम आयुक्त के अधिकार क्षेत्र तक सीमित नहीं है। हिमाचल में ही बेरोजगार दस लाख से ज्यादा हैं और देश में तो इतने हैं जितनी करीब अमेरिका या पाकिस्तान की जनसंख्या। बेरोजगारी कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक फेरबदल की

लेखक, देवेंद्र सिंह गुलेरिया वरिष्ठ पत्रकार एवं पुस्तक ‘बेरोजगार की आखिरी रात’ के लेखक हैं।

जरूरत है। नियमित कर्मचारियों और सेवानिवृत्तों को दी जा रही अनावश्यक सुविधाओं में कटौती कर भी कुछ नई भर्तियां की जा सकती हैं ताकि कुछ पात्र लोग तो निराशा के अंधेरे से बाहर निकलें। इसके अलावा और भी बहुत कुछ होना चाहिए ताकि कल को किसी स्कूल की टीचर किसी बच्चे से जब यह पूछे कि- तुम्हारा बाप क्या करता है?’ तो बच्चे को शर्म के मारे सिर न झुकाना पड़े। कोई पत्नी समाज में इसलिए मुंह छिपाती न फिरे कि उसका पति बेरोजगार है। कोई मां इस उम्मीद में न मर जाए कि काश वह भी अपने बेटे को नौकरी पर लगता देख पाती। कोई बेरोज़गार समाज में अच्छे दिनों की आस में भागता न फिरे। फिर भी प्रधान सचिव ने पत्र लिखा, इसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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