बेरोजगारी आज सबसे बड़ी समस्या है। बेरोजगारी के कारण ही आतंकवाद, क्राइम और नशे का चलन बढ़ रहा है। इस पर मैं लिखता रहा हूं। बेरोजगारी और
हाल ही में हिमाचल सरकार का पत्र मिला। पढ़कर अच्छा लगा। इसमें श्रम एवं रोजगार विभाग के प्रधान सचिव ने ‘बेरोजगार की आखिरी रात’ किताब का ‘संज्ञान’ लेते हुए श्रम आयुक्त को पत्र लिखकर इस संदर्भ में आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है। उनकी पहल स्वागत योग्य है। पर बेरोजगारी दूर करना श्रम आयुक्त के अधिकार क्षेत्र तक सीमित नहीं है। हिमाचल में ही बेरोजगार दस लाख से ज्यादा हैं और देश में तो इतने हैं जितनी करीब अमेरिका या पाकिस्तान की जनसंख्या। बेरोजगारी कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक फेरबदल की
जरूरत है। नियमित कर्मचारियों और सेवानिवृत्तों को दी जा रही अनावश्यक सुविधाओं में कटौती कर भी कुछ नई भर्तियां की जा सकती हैं ताकि कुछ पात्र लोग तो निराशा के अंधेरे से बाहर निकलें। इसके अलावा और भी बहुत कुछ होना चाहिए ताकि कल को किसी स्कूल की टीचर किसी बच्चे से जब यह पूछे कि- ‘तुम्हारा बाप क्या करता है?’ तो बच्चे को शर्म के मारे सिर न झुकाना पड़े। कोई पत्नी समाज में इसलिए मुंह छिपाती न फिरे कि उसका पति बेरोजगार है। कोई मां इस उम्मीद में न मर जाए कि काश वह भी अपने बेटे को नौकरी पर लगता देख पाती। कोई बेरोज़गार समाज में ‘अच्छे दिनों’ की आस में भागता न फिरे। फिर भी प्रधान सचिव ने पत्र लिखा, इसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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