बुजुर्ग हाथ जोड़कर बोले- “मंत्री जी, मुझे डीओ लैटर नहीं चाहिए, मुझे पानी का नलका लगाना है। डीओ लैटर तो मेरे पास पहले से दो पड़े हुए हैं।
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हम लोग हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में लोकतंत्र का पर्व मनाते हैं। हर वर्ष 15 अगस्त को हम इसी हर्षोल्लास के साथ स्वतंत्रता दिवस भी मनाते हैं। इन दिनों मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद अब हमें थोड़ा पीछे मुड़कर भी देख लेना चाहिए कि जिस ‘लोक’ के नाम पर यह विशाल ‘तंत्र’ खड़ा हुआ है, उसमें ‘लोक’ (आम जनमानस) की कोई हैसियत है भी या नहीं?
…बात काफी पुरानी है। उन दिनों अखबारों के लिए खबरें सूंघते हुए अकसर ही हमारा राज्य सचिवालय में आना जाना लगा रहता था। इसी दौरान मैंने महसूस किया कि सचिवालय में कुछ दिनों से एक लाठीधारी वयोवृद्ध कुछ तलाशता हुआ सा भटक रहा है। लोगों से पूछता- “पानी वाले मंत्रीजी कहां बैठते हैं…?, पानी वाले मंत्रीजी आज भी नी आए…?, पानी वाले मंत्रीजी कब आएंगे..?” उन्हें कहीं से कुछ जवाब मिलता तो कुछ लोग उन्हें नजरंदाज कर देते।
एक दिन मैं और मेरा एक मित्र पत्रकार खबर के सिलसिले से पानी वाले मंत्री यानी तत्कालीन सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री रविंद्र रवि से मिलने जा रहे थे कि सामने वही बुजुर्ग टकरा गए और छूटते ही बोले- “पानी वाले मंत्रीजी कब आएंगे…?”
मैंने बुजुर्ग को प्रणाम किया और कहा, “पानी वाले मंत्री सीट पर बैठे हैं, हम भी उन्हीं से मिलने जा रहे हैं।” बुजुर्ग यह सुनते ही एकाएक सचेत हो गए और लाठी टकटकाते हुए तुरंत हमारे पीछे हो लिए।
हम दोनों पत्रकार मंत्री के कमरे में गए, उन्हें प्रणाम किया और देखा कि बुजुर्ग भी हमारे साथ ही वहां मौजूद हैं। बुजुर्ग ने बड़ी ही विनम्रता से देहाती अंदाज में दोनों हाथ जोड़कर मंत्री को प्रणाम किया और बोले, “मंत्रीजी आपसे मिल कर बहुत खुशी हुई। मैं तो पिछले एक हफ्ते से रोज ही आपसे मिलने के लिए यहां घूम रहा हूं।”
मंत्री रविंद्र रवि ने भी उसी विनम्रता से बुजुर्ग को प्रणाम किया और पूछा, “कहिए जी, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?”
बुजुर्ग ने थैले से एक कागज निकाला और बोले, “जी, घर में पानी का नलका लगाना है। आप ये काम करा दो तो बड़ी मेहरबानी होगी।”
मंत्री जी ने बुजुर्ग से आवेदन पत्र लिया, उस पर कुछ निर्देश लिखा और बुजुर्ग को वापस थमाते हुए बोले, “इसे पीए के पास दे दो, काम हो जाएगा।”
हमने महसूस किया कि बुजुर्ग के चेहरे पर कुछ परेशानी सी झलक रही है। वे हाथ जोड़ कर मंत्री से बोले, “जी, इसे पीए को क्यों देना है। आप ही करो जो भी करना है।”
मंत्री रविंद्र रवि ने बुजुर्ग को समझाते हुए कहा, “पीए आपको इसका डीओ लैटर बनाकर देगा, उसे लेकर आप संबंधित अधिकारी को देना, वह आपका काम कर देगा। नलका लग जाएगा।”
इस पर बुजुर्ग हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और बोले- “मंत्री जी, मुझे डीओ लैटर नहीं चाहिए, मुझे पानी का नलका लगाना है। डीओ लैटर तो मेरे पास पहले से दो पड़े हुए हैं। ये मेरे किस काम के?” बुजुर्ग ने थैले से दो पुराने डीओ लैटर निकाल कर दिखाए और बोले, “ये देखो एक डीओ लैटर कौल सिंह (पूर्व आईपीएच मंत्री) का है और एक लैटर उनसे भी पहले जो पानी वाले मंत्री थे, धवाला (रमेश धवाला) का है। ऐसे डीओ लैटर का मैंने क्या करना, मुझे तो पानी का नलका लगाना है। अफसर लोग इन डीओ पर कोई एक्शन नहीं लेते।”
मंत्री रविंद्र रवि ने स्थिति को समझते हुए बुजुर्ग से आवेदन पत्र वापस लिया और विभाग के एक्सि-एन को फोन करके उन्हें बुजुर्ग का नाम पता लिखाया और निर्देश दिया कि इनके घर में 24 घंटों के भीतर पानी का नलका लग जाना चाहिए। काम पूरा होने पर मुझे इसकी सूचना दी जाए।
यह सुन कर बुजुर्ग का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने उसी प्रसन्न मुद्रा में दोनों हाथ जोड़कर मंत्री को प्रणाम किया और बोले, “बहुत-बहुत धन्यवाद मंत्री जी, भगवान आपको बहुत तरक्की दे।”
ये घटना मेरे जहन में कई दिनों तक घुमड़ती रही। इस घटना को याद करते हुए एक रात मैंने ये पंक्तियां लिखीं-
सियासत के गलियारे में हर रोज ये कौन लाठी टकोर रहा है।
बूढ़ा देहाती है शायद, सत्ता के अनुभव बटोर रहा है।।