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ब्लॉगः वीआईपी कल्चर, पैसा फेंक तमाशा देख!

होनहार छात्र गौरव सिंह देव ने इस साल 12

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वीं बोर्ड की परीक्षा में गणित में सौ में से सौ नंबर हासिल कर लिए। घर में पैसे की कमी है। लिहाजा बीएससी के लिए सरकारी कालेज में एडमीशन लेना पड़ा। जहां पढ़ाई नहीं होती, साल भर नारेबाजी होती रहती है। इस होनहार के लिए प्राइवेट स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी के दरवाजे नहीं खुल पाए। सौ में से सौ नंबर लाकर भी नहीं। प्राइवेट संस्थानों की सारी सीटें पैसे वालों के लिए आरक्षित हैं। ये नई तरह का आरक्षण है। कम पैसा कमाने वालों को वंचित करने वाला आरक्षण। समानता कैसे आएगी?

लेखक, गिरीश गुरूरानी, दैनिक हिंदुस्तान के संपादक हैं। यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है।

एकतरफ प्ले स्कूल और केजी से अंग्रेजी में पढ़ाई हो रही है और दूसरी तरफ बहुत से राज्यों के सरकारी स्कूलों में छठी क्लास से एबीसीडी सिखाने की कोशिश होती है। इस खाई को पाटे बिना समानता की बात कैसे कर सकते हैं?

हम आजादी के 70 साल का जश्न मना रहे हैं। हमें इसका गर्व है। भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। जमीनी हकीकत क्या है? जात-पात और भेदभाव बरकरार है। दलितों को बराबरी और सम्मान नहीं दे पाए। उन्हें समानता के वास्तविक अधिकार के लिए और कितना इंतजार करना होगा?

पैसे वाले मेडिकल-इंजीनियरिंग और प्रबंधन की सीटें और नौकरियां खरीद रहे हैं। जिनकी जेब में पैसा नहीं है, उन्हें एडमीशन से नौकरी तक समान मौके किस राज्य में मिल रहे हैं? देश और प्रदेश का भाग्य लिखने वाले सांसद और विधायक कैसे चुने जा रहे हैं? टिकट पैसे वाले को मिलेगा। किसी विद्वान और विषय विशेषज्ञ को उसकी योग्यता के आधार पर कोई पार्टी टिकट आफर कर रही है क्या? हर जगह पैसा फेंक, तमाशा देख।

अपने चारों ओर नजर डालिए, कई सीटों पर कैसे कैसे लोग सांसद-विधायक बन गए और कैसे कैसे योग्य लोग घर बैठे हैं। अब आप कहेंगे- इन्हें तो जनता ने चुना है। हम सबने। यह तो हमारी गलती है। हां, यह हमारी गलती है। इसीलिए स्वतंत्रता दिवस के दिन ईमानदारी से गलती स्वीकार करनी पड़ेगी। याद रखना होगा कि मेरी पसंद की पार्टी ने अगर पढ़े-लिखे और पाक-साफ आदमी को टिकट नहीं दिया तो मैं उसके खिलाफ वोट करने की हिम्मत जुटा लूं। व्यवस्था यहीं से बदलने लगेगी। खबरदार! जाति और संप्रदाय की राजनीति करने वाले देश को परोक्ष रूप से कमजोर कर रहे हैं। समानता के अधिकार को सरेआम चुनौती दे रहे हैं।

और आखिर में-

ये तथाकथित वीआईपी… अस्पताल में वीआईपी। समारोह में वीआईपी। सड़क पर वीआईपी। ये वीआईपी तो सारे समाज को अछूत समझते हैं। तभी तो सड़क पर हमें धमकाने के लिए हूटर बजाते हैं। सड़क पर एम्बुलेंस के बजाए इन हूटर वालों को वरीयता देने वाली मानसिकता से आजादी मिले, तभी तो सामाजिक समता आएगी। हां, आएगी… जरूर आएगी एक दिन।

एचएनपी सर्विस

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