आजकल हिमाचल में जहां मैं रहता हूं, देख रहा हूं कि यहां के भेड़ पालक अपनी ऊन जला रहे हैं। यह एक भयानक हालत है कि उत्पादक को अपना उत्पाद जलाना पड़ रहा है। आइये जानते हैं ऐसा क्यों होता है?
जब अंग्रेज भारत में आये थे, तब उन्होंने मुनाफा कमाने के लिए अपने उद्योगों का माल भारत के बाज़ारों में बेचने के लिए भारत के ग्रामीण उद्योगों को नष्ट किया। अंग्रेजों ने भारतीय जुलाहों के अंगूठे काट दिए थे ताकि वो कपड़े ना बना सकें। आज बड़े उद्योग ऐसी शिक्षा देश में चलाते हैं, जिसमें पढ़ कर बच्चे बड़े उद्योगों के लिए मजदूर बन सकें।
शिक्षा का दूसरा उदेश्य यह भी है कि बड़े उद्योगों के मुनाफे के रास्ते में आने वाले ग्रामीण कुटीर उद्योगों को कैसे बंद किया जाय। इसलिए यह शिक्षा समझाती है कि आपके शिक्षित होने की सफलता तभी है, जब आपको किसी सेठ की कंपनी में नौकरी मिल जाए, आपकी शिक्षा एक षड्यंत्र के तहत आपको बताती है कि आपका गांव में रहना पिछड़ापन है, आपकी शिक्षा आपको बताती है कि आपके गांव के काम धंधे पिछड़ापन है, आपकी शिक्षा बताती है कि भेड़ चराना, ऊन कातना, खुद बनाए ऊन के कपड़े पहनना पिछड़ापन है।
आपकी शिक्षा आपको बताती है कि आप अपना गांव के काम धंधे छोड़ कर शहर में आ जायें आपको समझाया जाता है कि विकसित होने का अर्थ है कि आप शहर में आकर पूंजीपति की कंपनी के गुलाम बन जाएं। इस तरह आपको अपने काम धंधे बंद करने के लिए उकसाया गया ताकि अमीर उद्योगपतियों के उद्योगों के लिए कोई प्रतिस्पर्धा जिंदा ना बचे।
दूसरी तरफ गांव के उद्योग धंधों को इसलिए भी नष्ट किया गया ताकि गांव से शहर में आने वाले लोग उद्योगपतियों को सस्ते मजदूर के रूप में मिल जाएं। आप पूरे देश में घूम जाइए, इसी तरह से पूरे देश में गांव की अर्थ व्यवस्था को जानबूझ कर नष्ट किया जा रहा है। इस हालत को समझने और इसके खिलाफ़ काम करने की ज़रूरत है।
मैंने अपने स्तर पर चरखा चलाना शुरू किया है। मैंने गांव में बेकार पड़ी ऊन लोगों के घरों से जमा करी, उसे चरखे पर काता, काती गयी ऊन से कुछ टोपियां बनाईं और एक स्वेटर बनाया। स्वेटर बहुत गर्म है। मेरी पत्नी वीणा अब वह स्वेटर पहनती है और यह स्वेटर बहुत सस्ते में बन गया। इसके लिए मुझे बाज़ार नहीं जाना पड़ा। ना ही इससे किसी पूंजीपति को कोई मुनाफा कमाने का मौका मिला।
मैंने अभी अहमदाबाद जाकर गांधी आश्रम में बनने वाले अम्बर चरखे देखे हैं। इन चरखों पर उन काती जा सकती है। इन चरखों को हिमाचल के इस इलाके में लाने की कोशिश करूंगा।
हमें विकास के वर्तमान मॉडल पर सवाल खड़े करने चाहियें। स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की ज़रूरत है। हमें इस मुनाफाखोर अर्थव्यवस्था और उसके द्वारा चलाई जा रही इस पूंजीवादी शिक्षा की चालाकी को भी समझना पड़ेगा। इस सब को समझे बिना इसका जवाब खड़ा करना मुश्किल होगा।