देहरादून में आपको चिकनी चमेली, हंसकर चल दिए, मेरा इश्क, चटकारा टाइम्स, अंधेरी रात का कुत्ता, खाल उधेड़ समाचार, घुंघरू की आवाज शीर्षक वाले न्यूज पेपर कभी किसी नाई की दुकान या ठेके के छापेखाने में मिल जाएं तो खूब हंसिए। एक व्यक्ति के 5 अखबार मिलें तो हंसिए मत। सब विज्ञापन से नोट ऐंठने का झाम है…
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उत्तराखंड खासकर देहरादून में पत्रकारों की संख्या बहुत अधिक है। उससे भी अधिक अखबारों की संख्या। यानी नौ कुली और ग्यारह ठेकेदार। इसका तात्पर्य है कि इस लाइन में या तो बहुत मलाई मिल रही है या फिर भारी बेरोजगारी। एक अनुमान के अनुसार इस शहर में ही करीब दो हजार पत्रकार हैं। इनमें 70 फीसदी भले ही ‘पत्रकार‘ शब्द का वास्तविक अर्थ भी न जानते हों, पर कहीं भी शर्ट के कालर खड़े कर खुद को पत्रकार कहते हैं। उत्तराखंड से करीब 2000 अखबार छपते हैं। इनमें वो नामी दैनिक समाचार पत्र नहीं, जिनका आपको सुबह चाय के साथ बेसब्री से इंतजार रहता है।
अखबारों में आपको चिकनी चमेली, हंसकर चल दिए, मेरा इश्क, चटकारा टाइम्स, अंधेरी रात का कुत्ता, खाल उधेड़ समाचार, घुंघरू की आवाज शीर्षक वाले न्यूज पेपर कभी किसी नाई की दुकान या ठेके के छापेखाने में मिल जाएं तो खूब हंसिए। एक व्यक्ति के 5 अखबार मिलें तो हंसिए मत। सब विज्ञापन से नोट ऐंठने का झाम है। इस मसले पर सूचना विभाग ‘चूसना‘ विभाग बना हुआ है। वहां भी सुना है मान्यता आदि के लिए पत्रकारों की गोटियां चलती हैं। हालांकि अब व्यवस्था की गई है कि एक परिवार से अधिकतम दो अखबार निकाले जा सकते हैं। यहां आपको एक पत्रकार विक्रम में ठुंसा और दूसरा फोर्ड कार में इंडिया किंग पीता मिले तो इस विषमता पर हैरत में न पड़ें।
मैंने यह रिपोर्ट फेसबुक वॉल में पोस्ट की तो मित्रों ने कमेंट डालकर इस जानकारी में और इजाफा कियाः-
Bharat Rawat– 25 प्रतिशत ही ईमानदारी की लाइन में खड़े होकर संघर्षरत मिलेंगे बाकि के लिए अलग से वीआईपी कोटे का जुगाड़ एक ही फोन पर करवा पाने की क्षमता है जी !
Mukesh Devrari – ये पूरा रैकेट चल रहा है। हालांकि गिने चुने ही हैं जो अखबार चलाकर पैसा कमा पा रहे हैं। ज्यादातर 250 रुपये में 25-30 कॉपी निकालते हैं और शायद बहुत थोड़े से पैसे ही कमा पाते हैं। हालांकि कागजों में 5500 से कम तो घुघुती टाइम्स का भी सर्कुलेशन नहीं है।
Akash Nagar अरे दादा क्यों किसी की दुकान बंद कराना चाहते हो। व्यापार चल रहा है खबरों को बेचने का। धंधा है पर बड़ा गंदा है।
Sunil Negi– Jahan vidyuta hogi akhbaar bhi honge. imaandaar bhi honge to baimaan bhi . behtar hoga hum sabko unke imaan par chord dein.
Deepak Kaintura – कुछ पत्रकार ऐसे हैं डाक्टर साहब! जिनको बांज के पेड़ का पता नहीं और पहाड़ की सर्वोत्तम पत्रकारिता का पुरस्कार मिल रखा है। एक दिन मैं पटेल नगर में किसी बणिया की दुकान में गया। उसका प्रेस का काम था तो उसके 10 पेपर छपते हैं अलग-अलग नाम से। जब उससे पूछा कि इतने अखबार कैसे चला लेते हो? तो उनका जबाव था– “फाइल Copy छपती हैं. एक को दस– दस हजार की एड मिल जाती है. 1 लाख कमा लेता हूं.”
ठाकुर नारायण सिंह रावत– अखबारों के ये नाम भी मिलेंगे- बेधड़क आवाज, धड़-धड आवाज.
…ऐसे में प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह सभी पत्रकारों की संपत्तियों की जांच कराए। नेता-अफसरों से उनके लेन-देन के व्यवहार की जांच कराए। अखबारों की वस्तुस्थिति भी जांच के दायरे में हो। कितने पत्रकार तैयार हैं सच का सामना करने को?