उत्तरकाशी। भारत- चीन सीमा के साथ लगती विश्व धरोहर गर्तांग गली पर्यटकों के लिए खुल गई है। इस विचित्र एवं खतरनाक मार्ग पर सीमित संख्या में ही पर्यटकों को जाने की अनुमति होगी। वहां जाने के लिए पर्यटकों को भैरोंघाटी में स्थापित चैकपोस्ट में पंजीकरण करवाना होगा।
प्राचीनकाल में इस सीमांत क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने कड़ी मेहनत से खड़ी चट्टानों को काटकर जादूंग व नेलांग को हर्षिल क्षेत्र से जोड़ने के लिए इस अद्भुत पैदल मार्ग का निर्माण किया था। बाद में इसी दुर्गम मार्ग से स्थानीय लोगों ने घोड़ों- खच्चरों द्वारा तिब्बत के साथ व्यापार भी शुरू किया, कई दशकों कत चला। बताया जाता है कि इस खतरनाक मार्ग पर माल ढुलाई के दौरान उस समय बहुत दुर्घटनाएं भी होती थीं। अक्सर घोड़े, खच्चर पहाड़ से लुढ़क कर नीचे खाई में जा गिरते थे। बाद में सीमावर्ती दोनों ओर (भारत- तिब्बत) के व्यापारियों ने मिलकर अफगानी पठानों से इस 150 मीटर दुर्गम मार्ग को लकड़ी की सीढ़ियां, ट्रैक और जंगले बनाकर बेहतर बनाया।
इतिहास में यह भी दर्ज है कि भारत- चीन युद्ध से समय 1962 में भारतीय सेना ने भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक सामान पहुंचाने के लिए इस मार्ग का प्रयोग किया था। समय के साथ- साथ लकड़ी की सीढ़ियां, ट्रैक, जंगले क्षतिग्रस्त होते गए और अंततः प्रशासन को इस पर आवाजाही रोक देनी पड़ी।
पर्यटन विभाग ने गत वर्ष इस विश्वधरोहर के पुनर्निमार्ण का बीड़ा उठाया। इसके लिए एक मुश्त 64 लाख रूपये की राशि लोकनिर्माण विभाग को देकर काम शुरू करवाया गया था। अब यह पर्यटकों की चहलकदमी के लिए तैयार है।
डीएम मयूर दीक्षित ने गत 18 अगस्त को गंगोत्री नेशनल पार्क के उप निदेशक व जिला पर्यटन विकास अधिकारी को गर्तांग गली को पर्यटकों के लिए खोलने के निर्देश दे दिए। पर्यटकों को यहां आने के लिए भैरवघाटी के पास स्थापित चेकपोस्ट पंजीकरण कराना होगा।
पर्यटकों व ट्रेक की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार में अधिकतम 10 लोगों के जाने की ही अनुमति होगी। ट्रेक में झुंड बनाकर आवागमन करने, एक जगह बैठने और ट्रैक की रेलिंग से नीचे झांकने पर भी पाबंदी लगाई गई है।