शिमला। .. तो क्या बिलासपुर का बहुप्रचारित ‘एम्स’ भी कांगड़ा की सेंट्रल युनिवर्सिटी की तर्ज पर ही बनेगा? क्या आम जनता को दिखाए जा रहे ये हसीन सपने कभी जमीन पर उतरेंगे भी या यूं ही हवा में तैरते रहेंगे? सेंट्रल युनिवर्सिटी पिछले करीब छह वर्षों से नेताओं के बयानों में धर्मशाला और देहरा के बीच झूल रही है, जमीन पर नहीं उतर पाई। बिलासपुर में एम्स को लेकर भी पिछले करीब दो वर्षों से खूब प्रचार हो रहा है, लेकिन इसके लिए अभी तक भूमि हस्तांतरण की आरंभिक औपचारिकताएं भी पूरी नहीं हो पाई हैं। एक मुद्दा भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने पकड़ रखा है तो दूसरा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने।
वैसे बिलासपुर में पिछली करीब आधी सदी से भाखड़ा बांध विस्थापितों के पुनर्वास का मुद्दा भी हर चुनाव में भुनाया जाता रहा है। इस मुद्दे को कांग्रेस ने भी खूब भुनाया और भाजपा ने भी।लेकिन समाधान आज तक नहीं हुआ। अब इसमें ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंसिस (एम्स) का एक और मुद्दा जुड़ गया है।
बिलासपुर का एम्सः बिलासपर में निकट भविष्य में एम्स के खुलने की कोई संभावना नहीं है तथा इसके भी केवल चुनावी मुद्दा बने रह जाने की ही आशंका है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक उस वन भूमि को अपने नाम ट्रांसफर करने के लिए अप्लाई तक नहीं किया है, जिस पर इसका निर्माण प्रस्तावित है। बिलासपुर के कोठीपुरा में, जहां यह संस्थान बनाया जाना है, में करीब 1200 हेक्टेयर भूमि पशुपालन विभाग की थी। यह भूमि स्वास्थ्य विभाग को ट्रांसफर हो चुकी है, लेकिन अभी भी 40 हेक्टेयर भूमि वहां वन विभाग की है, जिसे ट्रांसफर किया जाना बाकी है। इस भूमि में करीब 15 हजार पेड़ हैं, जिनकी मार्किंग होनी है, फिर पेड़ काटे जाने हैं। उसके बाद ही एनओसी मिलने पर संस्थान का शिलान्यास संभव हो पाएगा। इस 40 हेक्टेयर भूमि पर छोटे-बड़े कई तरह के पेड़ हैं, जिनमें खैर के पेड़ अधिक हैं। यानी मामले को लंबा खींचने के लिए पर्याप्त गुंजाइश रखी गई है। बिलासपुर में एम्स की घोषणा हुए लगभग दो वर्ष बीतने वाले है।
कांगड़ा की सेंट्रल युनिवर्सिटीः कांगड़ा जिले के लिए केंद्रीय युनिवर्सिटी की घोषणा करीब छह वर्ष पूर्व हुई थी, लेकिन राजनीतिक खींचतान के चलते अभी तक इसके लिए भूमि का चयन तक नहीं हो पाया है। अभी भी तय नहीं है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में बनेगा, देहरा में बनेगा या फिर कहीं तीसरी जगह। मात्र औपचारिकताएं निभाने के लिए वाइस चांसलर के कार्यालय से लेकर छात्रों की कक्षाएं तक किराये के भवनों में चलाए जा रहे हैं। शायद लोगों को याद होगा कि वर्ष 1992 में धर्मशाला में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का रीजनल सेंटर खोलने की घोषणा भी हुई थी। भूमि के चयन के लिए टीमें भी दौड़ाई गईं। दशकों तक राजनेताओं की बयानबाजियों से अखबार काले होते रहे, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। मात्र औपचारिकता निभाने भर के लिए किराये के भवन में कुछ कक्षाएं शुरू हुईं..और बस।