Advertising

अंबुजा कंपनी की मार- अब वे घर के रहे न घाट के!

शिमला। सोलन जिला के दाड़लाघाट में स्थित अंबुजा सीमेंट कंपनी ने किसानों की जमीन हथियाने के बाद अंततः उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकाल कर दूर झटक दिया।  इन ग्रामीणों को भूमि अधिग्रहण की शर्तों के मुताबिक कंपनी में स्थायी रोजगार दिया जाना था, लेकिन इन्हें ठेकेदारों के हवाले कर दिया गया, जहां श्रम कानूनों की कोई परवाह नहीं की जाती है। …और अंततः इन्हें  रोजगार से हटा दिया गया। अभी 80 मजदूरों पर यह गाज गिरी है, 40 और मजदूरों पर तलवार लटकी हुई है। सरकार और सीमेंट कंपनी की जुगलबंदी के चलते अब ये लोग न किसान रहे और न ही मजदूर। न घर के, न घाट के!

Advertisement

ये वही अंबुजा सीमेंट कंपनी है, जो प्रदेश के सारे संसाधनों का इस्तेमाल कर सीमेंट बनाती है, लेकिन हिमाचल में सीमेंट महंगा और बाहरी राज्यों में सस्ता बेचती है। इसके लिए प्रदेश सरकार का उसे पूरा संरक्षण प्राप्त हैं। विभिन्न मंचों से कई बार यह मुद्दा उठाया गया, लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। कंपनी से निकाले गए मजदूरों ने 26 दिसंबर को क्षेत्र में महापंचायत बुलाने का निर्णय लिया है।

इन पीड़ित मजदूरों की अपनी- अपनी कहानियां हैं। वे बताते हैं कि भूमि अधिग्रहण के समय किस तरह नेताओं से लेकर प्रशासनिक अधिकारी भी उनके आगे पीछे घूमते थे। उन्हें आश्वासन दिया गया था कि जिनकी भूमि अधिग्रहण की जाएगी, उनके परिवार के एक सदस्य को कंपनी में स्थाई नौकरी दी जाएगी। इन्हीं शर्तों पर सरकार और कंपनी के मध्य एक एमओयू भी साइन हुआ। कंपनी ने 20 से 50 हजार रुपये प्रतिबीघा के हिसाब से किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया। जमीन हाथ आते ही कंपनी के तेवर बदल गए और स्थानीय जन प्रतिनिधि कंपनी के चाकर बन कर रह गए।   

कशलोग गांव के मदन शर्मा बताते हैं, अंबुजा सीमेंट ने 1993 में उनकी चार बीघा जमीन 20 हजार रुपये बीघा के हिसाब से माइनिंग के लिए अधिग्रहण की थी। हिमाचल सरकार व अंबुजा सीमेंट के बीच एक एमओयू हुआ था, जिसमें साफ लिखा है कि जिस भी परिवार की जमीन कारखाने के लिए अधिगृहित की जाएगी, उस परिवार के एक सदस्य को कंपनी में स्थाई नौकरी दी जाएगी। भूमि ले लेने के बाद कंपनी ने मुझे कोई स्थायी रोजगार नहीं दिया, बल्कि 1994 से 1998 तक ठेकेदार के पास रखा और फिर नौकरी से निकाल दिया। उसके बाद 2008 में मुझे फिर नौकरी पर बुलाया, लेकिन तब भी ठेकेदार के पास की रखा। अब कंपनी ने मुझे फिर से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

कंपनी से हटाए गए सभी कामगारों की इसी तरह की मिलती जुलती कहानियां हैं। प्रदेश सरकार और कंपनी के मध्य हुए तत्कालीन एमओयू की प्रतियां उनके पास हैं, लेकिन जब सरकार ही कुछ सुनने को तैयार नहीं है तो कंपनी क्यों परवाह करे।  अंबुजा कंपनी के एचआर हेड अविनाश वर्मा से मीडिया ने इस संबंध में जानकारी चाही तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि निकाले गए मजदूर अंबुजा कंपनी के मुलाजिम नहीं हैं। वे ठेकेदारों के पास टेंपरेरी आधार पर लगे थे। इनके लिए कंपनी में काम नहीं था, इसलिए हटा दिया गया। पता चला है कि यहां भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ से जुड़े नौ कामगारों को भी निकाला गया था, लेकिन ऊपर से दबाव पड़ने पर उन्हें वापस काम पर बुला लिया गया।

एचएनपी सर्विस

Recent Posts

पं नेहरू के प्रति मेरे मन में पूरा सम्मानः शांता कुमार

धर्मशाला। पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शांता कुमार ने कहा है कि पालमपुर नगर… Read More

6 months ago

मणिकर्ण में आग लगने से दो मंजिला मकान जलकर राख

कुल्लू। जिला कुल्लू के मणिकर्ण घाटी के गांव सरानाहुली में बुधवार रात को दो मंजिला… Read More

6 months ago

फासीवाद बनाम प्रगतिशील

फासीवाद और प्रगतिशील दोनों विपरीत विचारधाराएं हैं। एक घोर संकीर्णवादी है तो दूसरी समाज में… Read More

6 months ago

वाईब्रेंट विलेज नमग्या पहुंचे राज्यपाल, स्थानीय संस्कृति एवं आतिथ्य की सराहना की

राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के तहत किन्नौर जिला के सीमावर्ती… Read More

8 months ago

दुग्ध उत्पादकों के लिए जुमलेबाज ही साबित हुई सुक्खू सरकार

रामपुर। कांग्रेस ने चुनाव के दौरान 80 व 100 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से… Read More

11 months ago

खुलासाः मानव भारती विवि ने ही बनाई थीं हजारों फर्जी डिग्रियां

शिमला। मानव भारती निजी विश्वविद्यालय के नाम से जारी हुई फर्जी डिग्रियों में इसी विवि… Read More

11 months ago
Advertisement