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‘बेटियों का दर- दर भटकना अखरता है’

नाहन। घुमन्तु गुज्जरों की अपनी अलग ही दुनिया है। जन्म से लेकर…! खान पान, रहन सहन, शादी विवाह। और मृत्यु…। सब प्रकृति की गोद में खुले आकाश के नीचे जंगलों में होता है। शायद यह प्रकृति का ही मरहम है जो कठिन परिस्थितियों के बावजूद वे अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट रहते हैं। हां, समय के साथ इतना परिवर्तन जरूर देखने में आ रहा है कि अब बुजुर्ग चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर समाज की मुख्यधारा में शामिल हों और कुछ बेहतर जीवन जिए।

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लेखक, आनंद राज, समाज के हर पक्ष पर बारीक नजर रखते हैं।

 

घुमन्तु गुज्जर धूमन खान की इच्छा है कि उनकी तीनों बेटियां पढ़ लिखकर सरकारी नौकरियों में जाए  अथवा कोई स्थाई कारोबार करे। उन्हें बेटियों का साथ दर- दर भटकना पसंद नहीं है। धूमन खान इसी कारण अपनी बेटियों की पढ़ाई पर खूब जोर दे रहे हैं।  

धूमन खान की सबसे बड़ी बेटी खातून ने वर्ष 2012 में हरिपुरधार (सिरमौर) से जमा दो की कक्षा उत्तीर्ण की है। दूसरी बेटी रजिना जमा दो में और तीसरी बेटी जेतून 9वीं कक्षा में वर्तमान में हरिपुरधार में शिक्षा ग्रहण कर रही है। इसके अतिरिक्त दो बेटे भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। धूमन खान कहते हैं- ‘‘ मैं अपनी लाडली बेटियों को सम्मानजनक जीवन जीते देखना चाहता हूं।

उन्होंने बताया कि जब वे गर्मियों में पहाड़ों पर अपने मवेशियों को लेकर जाते हैं तो बच्चों को हरिपुरधार स्कूल में दाखिल कर देते हैं। सर्दियों में नीचे उतरने पर बच्चों को बनेठी स्कूल में दाखिल कराया जाता हैं। इससे पूर्व उन्होंने अपने बच्चों को सरकार द्वारा खोले गए मोबाईल स्कूल में शिक्षा ग्रहण करवाई है। बच्चों को पढ़ते- लिखते देख उन्हें बहुत खुशी होती है।

हिमाचल प्रदेश के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों, अधिकांशतः जनजातीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में गुज्जर और गद्दी समुदाय के लोग घुमंतू जीवन जी रहे हैं। पहाड़ों पर जब ठंड बढ़ने लगती है तो वे परिवार और माल मवेशियों सहित धीरे-धीरे नीचे उतरना शुरू कर देते हैं और मैदानी क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं। वहां जब गर्मियां शुरू हो जाती है तो धीरे- धीरे ऊंचाई की ओर बढ़ना शुरू कर देते हैं। इस तरह वे पूरे वर्ष 20 से 30 डिग्री तापमान में ही रहते हैं। मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से झुलसते रहते हैं और ऊंचे पहाड़ों पर लोग सर्दियों में ठंड से ठिठुरते हैं। लेकिन घुमंतु समुदाय के लोग इन झंझटों से दूर रहते हैं।

अपने व्यवसाय में इनका कौशल अद्वितीय है। माल मवेशियों का उपचार वे स्वयं करते हैं। इस मामले में ये लोग पशु चिकित्सकों को तो पढ़ा सकते हैं। मवेशियों के इलाज में काम आने वाली जड़ी बूटियां हों चाहे अंग्रेजी दवाइयां, इन्हें पूरी जानकारी रहती है। पशुओं के घायल होने पर वे कुशलता से घाव पर टांके भी लगाते हैं और कई तरह की सर्जरी भी आसानी से कर लेते हैं। माल मवेशियों की देखभाल वे अपने परिवार का सदस्य मानते हुए करते हैं। गुज्जर दूध, घी और खोया बेचकर परिवार का पालन पोषण करते हैं, जबकि गद्दी समुदाय के लोग भेड़, बकरियां बेचकर गुजारा करते हैं।

धूमन खान ने इन पंक्तियों के लेखक के साथ बातचीत करते हुए कहा कि उनके सभी विवाह आदि मांगलिक कार्य जंगल में ही सम्पन्न होते हैं। बच्चों का जन्म भी खुले आकाश के नीचे जंगलों में ही होता है। जंगल ही उनके घर हैं और रास्ते उनका साधन। न किसी से कोई शिकायत और न ही बहुत बड़ी इच्छाएं।

एचएनपी सर्विस

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