मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य में वर्तमान में 7,161 किलोमीटर क्षेत्र में 33 वन्य प्राणी अभयारण्य और दो नेशनल पार्क फैले हैं, जिनके युक्तिकरण की प्रक्रिया प्रगति पर है ताकि बस्तियों को वन्य प्राणी अभयारण्यों से बाहर रखा जा सके। युक्तिकरण की यह प्रक्रिया पूरी होने पर इन क्षेत्रों के 775 गांवों की 1.5 लाख आबादी अभ्यारण्य क्षेत्र से बाहर हो जाएगी। इन गांवों के लोगों की यह प्रमुख मांग भी थी।
मुख्यमंत्री ने कृषि पर बंदरों और अन्य जंगली जानवरों के बढ़ते कहर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार ने बंदरों की संख्या पर नियंत्रण पाने के लिए राज्य के विभिन्न भागों में चार बंदर वंध्यीकरण केंद्र स्थापित किए हैं, जबकि 21 और ऐसे केंद्र स्थापित करने की योजना है। अभी तक 35 हजार से अधिक बंदरों का वंध्यीकरण किया जा चुका है। बोर्ड ने इस कार्यक्रम को और सुदृढ़ करने के लिए सहायता अनुदान को वर्तमान में 1.35 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2.80 करोड़ रुपये कर दिया है।
प्रो. धूमल ने कहा कि स्पीति घाटी के किब्बर गांव के समीप 5.15 करोड़ रुपये की लागत से शीघ्र ही ‘दि हिमालयन स्नो लेपर्ड रिसर्च सेंटर’ विकसित किया जाएगा ताकि वन्य जीव प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में ही संरक्षित कर अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम चलाए जा सकें। सर्दियों के दौरान राज्य के जलाशयों में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। राज्य की वन्य प्राणी शाखा बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के तत्वावधान में इन प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों की सेटेलाईट ट्रैकिंग अध्ययन को सुदृढ़ बनाएगी तथा प्रवासी पक्षियों के लिए 18 और सोलर पॉवर्ड ट्रांसमीटर लगाएगी। पौंग बांध में प्रवासी पक्षी अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया जाएगा, जिसमें स्थानीय युवाओं को भी सम्बद्ध किया जाएगा ताकि संरक्षण व यात्रियों के मार्गदर्शन में उनका सहयोग लिया जा सके। पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग के सहयोग से पौंग बांध जलाशय में 2 करोड़ रुपये की इको-पर्यटन परियोजना भी कार्यान्वित की जाएगी ताकि यहां आने वाले पर्यटकों की आवश्यकता के अनुरूप अधोसंरचना सृजित की जा सके। उन्होंने वन्य प्राणी शाखा द्वारा विलुप्त गिद्धों के प्रजनन के लिए किए गए प्रयासों पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि इससे गिद्धों की संख्या बढऩे लगी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विश्व का पहला राज्य बनकर उभरा है, जहां ‘वैस्ट्रन ट्रैगोपैन (जुजुराणा) का शिमला जिले के सराहन गांव में सफलतापूर्वक प्रजनन किया गया और इस गांव की छवि ‘वैस्ट्रन ट्रैगोपैन विलेजÓ के रूप में बनी है। इस सम्बन्ध में यू.के. के वल्र्ड पीजेंट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष जॉन कॉर्डर ने प्रस्तुति दी है, जिनकी सेवाएं प्रदेश सरकार ने पीजेंट संरक्षित प्रजनन कार्यक्रम के लिए परामर्शी के तौर पर ली हैं। यूनाइटेड नेशन असेम्बली में उनके द्वारा दिए गए प्रस्तुतिकरण, जहां विश्व भर से 5500 प्रतिभागी उपस्थित थे, ने जुजुराणा के संरक्षण में राज्य की उपलब्धियों की व्यापक प्रशंसा की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में मोनाल के संरक्षित प्रजनन कार्यक्रम को भी सुदृढ़ किया जाएगा। इसके लिए मनाली के समीप हिमालयी मोनाल के संरक्षित प्रजनन विकास पर पहले चरण में 2 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं। वन्य प्राणी अपराध ब्यूरो भी स्थापित किया जाएगा, जिसके लिए भारत सरकार के साथ औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं।
इस अवसर पर वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. एम.के. रंजीत सिंह तथा श्री विजय भूषण ने भी राज्य में वन्य जीव संरक्षण के लिए अपनाए गए विभिन्न उपायों की जानकारी दी। प्रधान मुख्य अरण्यपाल तथा मुख्य वन्य जीव वार्डन डॉ. एके गुलाटी, मुख्य अरण्यपाल संजीवा पाण्डेय, विधायकगण तेजवंत नेगी, प्रवीण शर्मा व गोबिन्द शर्मा और पुलिस महानिदेशक डॉ. डीएस मन्हास आदि भी इस अवसर पर उपस्थित थे।