भारतीय चाय बोर्ड और उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड (यूटीडीबी) की यह पहल रंग लाई तो प्रदेश में न केवल चाय का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि पिछड़े क्षेत्रों में लोगों को अतिरिक्त रोजगार भी मिलेगा।
इस समय उत्तराखंड में गडख़ल, कौसनी, चंपावत, नौटी और देहरादून आदि में चाय के बागान हैं और यहां से विभिन्न देशों को चाय का निर्यात भी किया जाता है। गडख़ल, चंपावती और नौटी में आर्गेनिक चाय का भी उत्पादन किया जाता है, जिसकी विदेशों में बहुत मांग रहती है।
उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड के वित्त अधिकारी श्री खोलिया के अनुसार शुरुआती चरण में धौलादेवी व ताकुला ब्लॉक (अल्मोड़ा), गरुड़ (बागेश्वर), डीडीहाट (पिथौरागढ़), श्यामखेत धारी ब्लॉक (नैनीताल), पोखरी-फड़ाली (चमोली) में चाय के कारखाने स्थापित करने के लिए कवायद तेजी से चल रही है। ये सभी कारखाने सहकारिता के आधार पर लगाए जाएंगे तथा इनमें स्थानीय लोगों को ही हिस्सेदार बनाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि इन सभी स्थानों पर चाय की प्लांटेशन के लिए ढलानों का सर्वे करीब-करीब पूरा कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि सभी कारखानों में भारतीय बोर्ड के साथ ही यूटीडीबी, राज्य सरकार तथा काश्तकार साझीदार होंगे। भारतीय चाय बोर्ड के जरिए केंद्र सरकार फैक्ट्रियां लगने के बाद 30 से 60 फीसदी सब्सिडी भी देगी।
श्री खोलिया ने बताया कि इसी साल विभिन्न जिलों के ब्लॉकों में चयनित 5 से 10 हेक्टयर क्षेत्रफल में नर्सरी लगाई जाएगी, जबकि अगले पांच सालों में प्लांटेशन पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में करीब 15 हजार चाय के पौधे लगाए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि चाय पत्ती का उत्पादन शुरु होते ही सबसे पहले सहभागी किसानों को लाभांश दिया जाएगा। यूटीडीबी शुरुआती आठ से 10 साल तक इन चाय कारखानों की मॉनिटरिंग करेगा। 15 वर्षों के बाद बोर्ड को प्रति हेक्टेयर करीब 60 हजार रुपये का शुद्ध लाभ मिलने लगेगा।
चाय बागानों का क्षेत्रफल बढ़ाने पर जोर
उत्तराखंड में चाय की खेती के अधीन क्षेत्रफल को और बढ़ाने के लिए प्रक्रिया तेज हो गई है। विभिन्न जिलों की कुछ बंजर ढलानों में चाय के नए बागीचे लगाने और उनके आसपास चाय कारखाने स्थापित किए जाने की योजना है। कुमाऊं और गढ़वाल के कुछ ब्लॉकों में सहकारिता के आधार पर ये कारखाने लगाने के प्रस्ताव को भारतीय चाय बोर्ड ने भी हरी झंडी दे दी है।
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