शिमला। हिमाचल प्रदेश में तीसरे राजनीतिक विकल्प के लिए हिलोपा और सीपीएम की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा ने अपनी-अपनी पार्टियों में डैमेज कंट्रोल पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। इसी के परिणामस्वरूप राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चाएं शुरू हो गई है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार को काफी हद तक शांत कर लिया गया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस और भाजपा में इनकी नाराजगी अब मामूली नोक-झोंक तक सीमित होकर रह जाएंगी। उन्हें कोई बड़ा डैमेज करने से रोक लिया गया है।
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कांग्रेस में असंतुष्ट माने जा रहे वीरभद्र सिंह को चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंप कर शांत करने का प्रयास किया गया है। हालांकि उनके बागी तेवर अभी भी पहले की तरह बने हुए हैं, लेकिन फिर भी माना जा रहा है कि अब उनकी ओर से पार्टी में किसी बड़ी तोडफ़ोड़ की आशंका नहीं रही। भाजपा में भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार पिछले काफी समय से नाराज चल रहे हैं और प्रदेश में हिलोपा का उदय भी उनकी इसी नाराजगी का परिणाम माना जा रहा है। भाजपा में अनेक दिग्गज पार्टी छोडऩे के लिए मात्र शांता कुमार के इशारे के इंतजार में बैठे हैं। थर्ड फ्रंट की आशंकाओं ने भाजपा को भी समय रहते डैमेज कंट्रोल के लिए विवश कर दिया है। भाजपा हाई कमान की मध्यस्थता में शांता कुमार और मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के बीच बैठकों के कुछ दौर हो चुके हैं। हालांकि शांता कुमार की नाराजगी पूरी तरह से दूर नहीं हुई, लेकिन फिर भी दोनों नेता एक मंच पर दिखने शुरु हो गए हैं। भाजपा हाईकमान को उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव तक काफी कुछ संभाल लिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में थर्ड फ्रंट का भविष्य कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्टों पर ही टिका है। हिलोपा बेसब्री से इसी इंतजार में बैठी है कि भाजपा और कांग्रेस से कुछ बड़े दिग्गज अपनी पार्टियां छोड़ कर उसकी झोली में आ गिरें ताकि भावी थर्ड फ्रंट को ताकत मिल सके। सीपीएम और सीपीआई भी चाहते हैं कि उन्हें गठबंधन के लिए मजबूत साथी मिले ताकि चुनाव में जनता को विश्वास दिलाया जा सके कि प्रदेश में सशक्त तीसरा विकल्प मौजूद है। इसके लिए इन सबकी निगाहें वीरभद्र सिंह और शांता कुमार पर ही टिकी रही हैं। लेकिन पिछले दो हफ्तों के घटनाक्रमों से उन्हें निराशा ही मिल रही है।
हालांकि प्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान तीसरा विकल्प खड़ा करने का प्रयास पहले ही होता रहा है, लेकिन यहां वोटों का ध्रुवीकरण अधिकांशत: कांग्रेस और भाजपा के मध्य ही होने के कारण मजबूत तीसरा विकल्प नहीं उभर पाया। प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा ने भी इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया। लेकिन इस बार जमीनी तस्वीर काफी कुछ बदली हुई सी लग रही है। नगर निगम शिमला के चुनाव में मतदाताओं ने अपना जो रुझान दिखाया है, उससे कांग्रेस और भाजपा के कान खड़े हो गए हैं। इस चुनाव में सीपीएम ने महापौर और उपमहापौर पदों पर शानदार जीत दर्ज की। भाजपा के प्रदेश महासचिव खुशीराम बालनाटाह ने तो इस चुनाव का परिणाम आते ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र लिख डाला, जिसमें कहा गया था कि आज पूरे प्रदेश में जनता का यही मूड है, जो नगर निगम चुनाव में देखने में आया है। पत्र में आगे कहा गया कि यदि यहां पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन नहीं किया गया तो विधानसभा चुनाव में भी यही तस्वीर देखने को मिलेगी। खुशीराम बालनाटाह ने बाद में पार्टी को ही अलविदा कह दिया।