देहरादून। उत्तराखंड के विश्वविख्यात कार्बेट टाइगर रिजर्व में वन्य प्राणियों के आपसी संघर्ष में बाघों, हाथियों, गुलदारों आदि की मौतें हो रही हैं। बाघों और हाथियों के बीच तो जैसे जंग ही छिड़ हुई है। एक अध्ययन के अनुसार बीते पांच वर्षों में इस जंग में यहां 21 हाथी और 9 बाघ अपनी जान गवां चुके हैं। यह द्वंद्व बाघों और हाथियों की बीच नहीं नहीं है, बल्कि इसमें गुलदार भी शामिल हैं। कार्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन के लिए यह स्थिति बहुत ही चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
माना जा रहा है कि बाघों ने हिरनों के पीछे बेतहाशा भागने के बजाए अब शिशु हाथियों को अपना शिकार बनाना शुरू किया है, जिस कारण यहां बाघ और हाथी आपस में मुख्य प्रतिद्वंद्वी हो गए हैं। हिरन प्रजातियों खासकर सांभर व चीतल का शिकार करने के लिए बाघों को उनके पीछे लंबी दौड़ लगानी पड़ती है, जिसमें उनकी बहुत ऊर्जा जाया होती। फिर भी शिकार की कोई गारंटी नहीं। ऐसे में बाघों ने शिशु हाथियों पर अपना ध्यान आकर्षित किया है। जाहिर है इसकी प्रतिक्रिया तो होनी ही थी। कार्बेट टाइगर रिजर्व में बीती 27 मई को भी आपसी संघर्ष में एक बाघिन की मौत हो गई थी।
रिजर्व के निदेशक के निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि लगातार ऐसी घटनाएं बढ़ते उन्होंने देख एक अध्ययन कराया गया, जिसमें पाया गया कि बीते पांच वर्षों में रिजर्व में बाघ, हाथी व गुलदारों की आपसी संघर्ष में काफी मौतें हो रही हैं। उन्होंने बताया कि आंकड़ों के विश्लेषण के साथ ही संघर्ष के कुछ स्थानों का निरीक्षण करने के बाद अपनी अध्ययन रिपोर्ट राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को सौंप दी गई है।
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार एक अप्रैल 2014 से 30 मई 2019 तक रिजर्व में तीनों प्रजातियों के 36 वन्यजीवों (बाघ, हाथी व गुलदार) की आपसी संघर्ष में मौतें हुईं। इनमें सबसे अधिक 21 हाथी थे। बात सामने आई कि इनमें से 13 हाथियों को बाघों ने न सिर्फ मारा, बल्कि उनका मांस भी खाया। इनमें आठ शिशु हाथी थे।
रिपोर्ट के अनुसार पांच साल में कार्बेट में नौ बाघ मरे। इनमें से सात की मौत इलाके और मिलन के लिए हुए आपसी संघर्ष में गई, जबकि दो बाघों की मौत की वजह जंगली सुअर और सेही के हमले बने।रिजर्व क्षेत्र में छह गुलदारों की भी मौत हुई। इनमें से दो को बाघों ने मारा, जबकि दो का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया। दो की मौत आपसी संघर्ष में हुई।