देहरादून। उत्तराखंड में मोदी का तिलिस्म टूट चुका है। संसदीय चुनाव में मोदी लहर के बूते भाजपा ने पांचों सीटें जीती थीं,
दिलचस्प बात यह है कि संसदीय चुनाव में करारी पराजय के कारण कांग्रेसी खेमा बुरी तरह हताश व निराश था तथा पंचायती राज चुनावों में भी उसने कोई खास दिलचस्पी नहीं ली। उसके बावजूद नतीजे कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले एवं उत्साहजनक रहे हैं। काफी पदों पर निर्दलीयों ने भी जीत दर्ज की है।
चुनावी पर्यवेक्षकों का इस बारे में मानना है कि पंचायती चुनावों में एक तो मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों को अधिक तरजीह दी है और दूसरी बात यह रही कि भाजपाइयों ने मोदी लहर पर अधिक भरोसा करते हुए मनमाने ढंग से चहेतों को टिकट बांटे, जिनकी आम जनता में कोई पहचान नहीं थी। भाजपा ने जिला पंचायत सदस्य के पदों के लिए बाकायदा अपने प्रत्याशी घोषित किए थे, जबकि कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी तो खड़े किए, लेकिन उन्हें पार्टी समर्थित प्रत्याशी घोषित करने से परहेज ही किया। शायद कांग्रेस की यह रणनीति भी काम कर गई।
राज्य में अब पंचायती राज संस्थाओं के विभिन्न अध्यक्ष पदों के लिए जोड़तोड़ का सिलसिला शुरू हो गया है। यहां ऐसा हमेशा से होता आया है। जो दल खरीद-फरोख्त में आगे रहेगा, अधिकांश अध्यक्ष पद उसी की झोली में जाएंगे, लेकिन इस कसरत से जमीनी तस्वीर नहीं बदल जाती।
हालांकि पंचायती राज चुनावों को लेकर दोनों ही दल जीत के बढ़ चढ़ कर दावे कर रहे हैं, लेकिन भाजपाइयों के चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ पढ़ी जा सकती हैं।