देहरादून। कांग्रेस हाईकमान द्वारा थोपे गए मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को विफल होकर अंततः कुर्सी छोड़नी
बात इतने पर ही रुक जाती तो भी गनीमत थी, मुख्यमंत्री ने भविष्य में विधायकों के कुनबे में शामिल होने वालों के लिए भी पेंशन बढ़ाने का एडवांस इंतजाम कर दिया। मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार पहली बार विधायक चुने जाने पर बीस हजार, दूसरी बार चुने जाने पर तीस हजार और तीन बार चुने जाने पर पैंतीस हजार रुपया प्रतिमाह पेंशन मिलेगी। विधायक रहने पर हर साल एक हजार रुपये बढ़ेंगे सो अलग। चूंकि यह कृपा सभी विधानसभा में बैठने वालों पर बरसेगी, इसलिए इस पर विरोध की आवाज तो क्या आहट भी नहीं हुई।
बढ़े हुए वेतन-भत्तों की सूची देखें तो एक-एक विधायक हर महीने लाखों का बैठ रहा है। कुछ-कुछ विवरण तो बड़े रोचक हैं। विधानसभा अध्यक्ष का जेब खर्च तीस हजार रुपया प्रतिमाह से बढ़ कर साठ हजार रुपया प्रतिमाह हो गया है तो विधानसभा उपाध्यक्ष का जेब खर्च तीस हजार रुपया प्रतिमाह से बढ़कर पचास हजार रुपया प्रतिमाह कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त स्पीकर व डिप्टी स्पीकरों के आवासों के सौन्दर्यीकरण को भी सरकार ने बेहद जरूरी काम मानते हुए इस मद के लिए क्रमशः बीस हज़ार और पंद्रह हज़ार रुपया प्रतिमाह देने का इंतजाम किया है।
विधानसभा का एक सत्र बमुशिकल 7 दिन ही चल पाता है, आपदा के बाद हुआ सत्र और हाल ही में लोकायुक्त विधेयक पारित करवाने के लिए बुलवाया गया विशेष सत्र तो तीन ही दिन का था। सत्र तीन दिन चले या छह दिन पर माननीय अध्यक्ष जी और उपाध्यक्ष जी का जेब खर्च और वेतन-भत्ता तो हर महीने ही फलेगा-फूलेगा। विधायकों के वेतन-भत्ते दुगने तो हुए ही हैं, कुछ नया भी उसमें जुड़ गया है जैसे कि अब विधायकों को पांच लाख रुपये का दुर्घटना बीमा भी मिलेगा। गौरतलब है कि उत्तराखंड में हाल ही में आई भीषण आपदा में मरने वालों के आश्रितों को पांच लाख रुपया केंद्र सरकार का अंश जुड़ने के बाद ही मिल पाया था। इससे पहले की आपदाओं में मरने वालों के आश्रितों को तो एक लाख रुपया ही मिला था। पर माननीय विधायकों का जीवन तो आम लोगों से कई गुना ज्यादा अनमोल है। इसलिए हर महीने वेतन-भत्ते के रूप में लाखों रुपया पाने के बाद भी वे पांच लाख रुपये के दुर्घटना बीमे के हकदार बनाये गए हैं। नेता प्रतिपक्ष का भत्ता तीस हज़ार से बढ़ कर पचास हज़ार रुपया प्रतिमाह हो गया है और इनके आवास के सौन्दर्यीकरण के लिए भी दस हज़ार रुपये का प्रावधान कर दिया गया है। मंत्रियों का वेतन पंद्रह हज़ार दे बढ़ाकर पैंतालीस हज़ार रुपया प्रतिमाह कर दिया गया है और आवास का किराया भी दस हज़ार से तीस हज़ार रुपया प्रतिमाह कर दिया गया है।
सामन्य लोगों और बेरोगारों की बात पर सरकार को तुरंत ही खजाने पर बोझ पड़ने की चिंता सताने लगती है। यह उत्तराखंड की सरकार के साथ भी हुआ। जून 2012 में उत्तराखंड सरकार ने निर्णय लिया था कि राज्य सरकार की नौकरियों के आवेदन करने के लिए बेरोजगार युवाओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। लेकिन अब सरकार ने बेरोजगारों से नौकरियों के आवेदन के लिए धनराशि वसूलने की पुरानी परिपाटी भी बहाल कर दी है। अब सामान्य श्रेणी के युवाओं को पांच सौ रुपये और अनुसूचित जाति-जनजाति के युवाओं को हर आवेदन पर तीन सौ रुपये खर्च करने होंगे। इस छूट का राज्य के युवाओं ने बहुत लाभ उठा लिया हो ऐसा भी नहीं है। बिना शुल्क के आवेदन वाली बीते दो सालों में केवल एक ही सरकारी परीक्षा आयोजित हुई है।
विधायकों मंत्रियों के वेतन-भत्ते बेहिसाब बढ़ाने के पीछे कांग्रेस के नेताओं का तर्क है कि बढ़ती महंगाई को देखते हुए ऐसा करना जरूरी था। जिस विधानसभा के 70 विधायकों में से 33 घोषित तौर पर करोड़पति हों और बाकी भी लाखों में खेल रहे हों, उन्हें तो महंगाई से बचाने का इंतजाम करने के लिए रुपये की नदियाँ बरस रही हैं, लेकिन बेरोजगारों को तीन सौ पांच सौ की राहत देने में खजाना लुटा जा रहा है। यह कुतर्क नहीं तो और क्या है। बिल्लियों द्वारा दूध की रखवाली में दूध चट करना तो सुना था पर यहाँ तो जनता के खजाने की हिफाजत के लिए चुनी गयी सरकार खजाना अपने और अपने जैसों की जेबों में भर रही हैं और सीना ठोक कर इसका ऐलान भी कर रही हैं। (भडास४मीडिया.कॉम से साभार)