शिमला। केंद्र सरकार द्वारा सेब आयात के लिए सभी द्वार खोल जाने से हिमाचल में जहां बागवान चितिंत हो उठे हैं, वहीं कांग्रेस और भाजपा के मध्य राजनीति भी गरमा गई है। दोनों दल इसके लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस नेता आरोप लगा रहे हैं कि यह मोदी सरकार की प्रदेश के बागवानों के साथ वादा खिलाफी है तो भाजपा का कहना है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार इस मामले में अदालत में अपना पक्ष रखने में विफल रही। इसी कारण केंद्र को अपनी अधिसूचना में संशोधन करना पड़ा।
देश में पहले मुंबई की एक बंदरगाह नहावा शेवा से ही सेब के आयात की इजाजत थी, लेकिन सरकार ने अब नई अधिसूचना जारी कर इसके लिए सभी प्रमुख बंदरगाहों, हवाई अड्डों और भू मार्गों को खोल दिया गया है। इससे हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड सहित तमाम सेब उत्पादक राज्यों को बाजार में कड़ी स्पर्धा से जूझना पड़ेगा। हिमाचल में सेब का सालाना 3200 करोड़ का कारोबार होता है।
हिमाचल प्रदेश में बागवानी में आधुनिक तकनीक का बहुत कम इस्तेमाल होता है, जिस कारण सेब की उत्पादन लागत बहुत अधिक आती है। सीजन के दौरान बरसात के कारण सड़कों की हालत भी बहुत खस्ता रहती है। ऐसे में पैकिंग और ढुलाई का खर्चा काटने के बाद अकसर बागवानों के हाथ कुछ भी नहीं लगता। विकसित देशों में सरकारी प्रोत्साहन के कारण सेब की उत्पादन लागत काफी कम आती है, जिस कारण यहां के बागवान उनसे स्पर्धा करने की स्थिति में नहीं हैं। सेब उत्पादक संगठन और राजनीतिक दल इसी कारण यहां सेब को विशेष श्रेणी का दर्जा देते हुए विदेशों से इसके आयात को हतोत्साहित करने की मांग उठाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्य के बागवानों को आश्वासन दिया था कि सेब के बढ़ते आयात पर अंकुश लगाया जाएगा, लेकिन अब सरकार ने यू टर्न ले लिया है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं मुख्य संसदीय सचिव (कृषि) रोहित ठाकुर ने कहा, “मोदी सरकार के नए फरमान ने हिमाचल के बागवानों की रीढ़ पर हमला बोल दिया है। प्रदेश से भाजपा के चार-चार सांसद हैं और एक केंद्रीय मंत्री भी है। इनमें से किसी ने भी हिमाचल के हितों का मुद्दा केद्र में नहीं उठाया।” वरिष्ठ कांग्रेस नेता कुलदीप सिंह राठौर कहते हैं कि राज्य के सभी सांसदों को राजनीति से ऊपर उठ कर यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उठाना चाहिए।
एचपीएमसी के प्रबंध निदेशक जेसी शर्मा भी कहते हैं, “केंद्र सरकार की अधिसूचना से हिमाचल समेत पहाड़ी राज्यों के बागवानों को झटका लगा है। मुंबई के रास्ते विदेशी सेब भारत की मंडियों में 8-10 प्रतिशत अधिक लागत पर पहुंचता है। अब इतने ही प्रतिशत सेब मार्किट में सस्ता मिलेगा। इससे यहां सेब उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।”
पूर्व बागवानी मंत्री एवं भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष नरेंद्र बरागटा इसका जवाब देते हुए कहते हैं, “वीरभद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में अपना पक्ष ही नहीं ऱखा, जिस कारण यह नौबत आई है। मोदी सरकार ने ही पहली बार गत सितंबर महीने में बागवानों के हितों को देखते हुए सेब के आयात पर सख्ती की थी। ये आयात केवल मुंबई के नहावा शेवा पोर्ट तक ही सीमित कर दिया गया था। पूर्व यूपीए सरकार ने ऐसा कदम पहले कभी नहीं उठाया था। अब मदास हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है, जिस कारण सरकार को अधिसूचना वापस लेनी पड़ी है।”
भारत में सबसे ज्यादा तीन देशों- चीन, चिली और अमरीका से सेब का आयात होता है। इसमें 40 प्रतिशत चीन से, 25 प्रतिशत चिली से और 23 प्रतिशत अमरीका से होता है। इसके अलावा न्यूजीलैंड, इरान, अफगानीस्तान और कुछ यूरोपीय देशों से भी यहां सेब आता है।