देहरादून। ऐसा शायद उत्तराखंड में ही हो सकता है। प्रदेश सरकार ने गोपेश्वर में आईटी कालेज (इंस्टीच्यूट आॉफ टेक्नोलॉजी) की घोषणा की और इसके लिए
प्रदेश में उच्च और तकनीकी शिक्षा को लेकर लापरवाही चरम पर है। प्रदेश सरकार ने गत वर्ष गोपेश्वर में आईटी कालेज खोलने की घोषणा की थी और इसे यूटीयू के संघटक कालेज के तौर पर चलाने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद सरकार तो अपनी घोषणा को भूल गई, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने नए शिक्षा सत्र में इस काल्पनिक कालेज में पांच ब्रांच की 300 बीटेक सीटें दे दीं। प्रथम चरण की बीटेक काउंसिलिंग शुरू हुई तो करीब 288 सीटें आवंटित भी कर दी गईं, लेकिन इन छात्रों को नहीं मालूम कि उनके कालेज का सही एड्रेस क्या है, बिल्डिंग कैसी है, इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है और पढ़ाने वाले कौन हैं। विवि के कुलपति प्रो. डीएस चौहान का इस संबंध में कहना है कि कालेज के लिए उन्हें फिलहाल दो हेक्टेयर जमीन दी गई है, जिस पर अब कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया गया है। क्या मात्र दो माह में यह इमारत इतनी बन जाएगी कि उसमें पढ़ाई की सके? इसका किसी के पास भी कोई जवाब नहीं है। लोग कह रहे हैं कि अगर यूटीयू के संघटक कालेज में ही ऐसा होगा तो फिर निजी कालेजों की मनमानी पर लगाम कैसे लगेगी?
तकनीकी विवि ने हालांकि गोपेश्वर कालेज के लिए खासतौर से विलंब से सत्र शुरू करने और प्रवेश प्रक्रिया यूटीयू के सुद्धोवाला स्थित परिसर में पूरी करने की सुविधा तो दे दी है, लेकिन सवाल यही है कि आखिर कालेज के लिए इतने कम समय में काबिल फैकल्टी कहां से आएगी। नियमों के मुताबिक कालेज बनने और इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेल्प होने के बाद ही उसमें दाखिले लिए जाते हैं।
उत्तराखंड में केवल गोपेश्वर आईटी कालेज ही नहीं, बल्कि कई और कालेज भी इसी तरह सरकार की लापरवाही का शिकार हैं। गोपेश्वर में प्रदेश सरकार की ओर से महिलाओं के लिए विशेषतौर पर इंजीनियरिंग कालेज की घोषणा की गई थी। डब्ल्यूआईटी के नाम से यूटीयू ने इस कालेज को गत वर्ष ही संचालित कर दिया था, लेकिन इस कालेज की भी अभी तक कोई बिल्डिंग नहीं है। हालत यह है कि विवि के नए परिसर में स्थित एडमिन हॉल में यह कालेज संचालित किया जा रहा है। पिथौरागढ़ स्थित एसआईटी कालेज में भी फैकल्टी की भारी कमी है। इस कालेज में अब संविदा शिक्षकों को रखने की तैयारी चल रही है।
यूटीयू के कुलपति प्रो. डीएस चौहान कहते हैं-आईटी कालेज के लिए हमें सरकार की ओर से दो हेक्टेयर जमीन दी जा चुकी है। कंस्ट्रक्शन हाल ही में शुरू हुआ है। वैकल्पिक व्यवस्था के लिए हमारी टीम गोपेश्वर गई है। फिलहाल हमारे पास दो माह का वक्त है। छात्रों के रहने के लिए भी वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है।