शिमला। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान इस बार राजनीतिक दलों की भीड़ देखने को मिलेगी। पहली बार विकल्प के रूप में तरह-तरह के चुनाव
हिमाचल प्रदेश में अभी तक वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस और भाजपा के मध्य ही रहा है। ये दोनों दल ही पिछले कई दशकों से बारी-बारी यहां सत्ता पर काबिज होते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय से लेकर प्रदेश स्तर तक गैर भाजपा और गैर कांग्रेस पार्टियों का प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है। शिमला नगर निगम के चुनाव में भी इसकी एक झलक देखने को मिली, जिसमें वामपंथी दल सीपीआईएम ने दोनों प्रमुख दलों को पटखनी देते हुए मेयर और डिप्टी मेयर पद पर कब्जा जमा लिया। इसका मतलब यह निकाला गया कि प्रदेश की जनता कांग्रेस और भाजपा से ऊब चुकी है और यहां चुनाव लडऩे के लिए में कुछ स्कोप मौजूद है। इसी कारण यहां अनेक दल नया विकल्प देने की बात कहते हुए जनता के बीच जाने की तैयारियां कर रहे हैं।
हालांकि इनमें से अधिकांश दल यहां मात्र शुगल मेले के लिए ही आ रहे हैं।
वे स्वयं को राष्ट्रीय दल के रूप में दर्ज करवाने के उद्देश्य मात्र से रिकॉर्ड के लिए यहां से कुछ वोट बटोरना चाहते हैं, जबकि प्रदेश की राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। उदाहरण सामने हैं- बसपा ने पिछली बार प्रदेश की सभी 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। उसने 9 प्रतिशत तक वोट प्राप्त किए और पार्टी का एक प्रत्याशी जीतने में भी कामयाब हुआ, लेकिन चुनाव के बाद बसपा ने प्रदेश की ओर मुड़कर भी नहीं देखा।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यही सब करने के लिए भी इन दलों ने काफी मोटा बजट रखा होता है। पिछली बार बसपा ने चुनाव के दौरान पानी की तरह पैसा बहाया। बसपा नेता के रूप में मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने टैक्सी की तरह हेलिकॉप्टर का प्रयोग कर प्रदेश भर में हर दिन पांच-पांच जनसभाओं को संबोधित किया। राजनीतिक दलों के इसी मोटे बजट को देखकर अकसर नेता उनकी ओर नेता दौड़े चले जाते हैं। ताजा उदाहरण में पूर्व मंत्री राधा रमण शास्त्री को ही लें, प्रदेश में भाजपा के असंतुष्टों को एकजुट कर हिलोपा का गठन करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले राधा रमण शास्त्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का मामूली इशारा मिलते ही सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए। तब तक हिलोपा का कार्यालय भी उनके घर में ही चल रहा था।
थर्ड फ्रंट ‘हिमाचल लोक मोर्चा’ हो चाहे बाहर से आने वाले दल, सभी की निगाहें प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्टों पर ही टिकी हैं। दोनों ही दलों में अधिकांश सीटों पर टिकटार्थियों की भारी भीड़ संकेत दे रही है कि टिकट फाइनल होने के समय अनेक दिग्गज छिटक कर इधर-उधर होंगे। ऐसे नेताओं को लपकने के लिए राजनीतिक दलों की इस बार यहां कोई कमी नहीं होगी।
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