कुल्लू। कुल्लू जिला के निचले एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण सेब की परंपरागत किस्में अलाभकारी साबित हो
बौनी किस्म के रूट स्टॉक एम-9 पर तैयार इन पौधों की अधिकतम ऊंचाई पांच -छह फुट तक ही होती है तथा इन्हें सहारा देने के लिए टेक भी लगानी पड़ती है अन्यथा अपने ही भार से ये गिर जाते हैं। इस रूट स्टॉक पर तैयार पौधे तीन वर्ष में ही फल देने लगते हैं। पौधे काफी नजदीक यानी तीन फुट की दूरी पर लगाए जाते हैं, जिस कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादन काफी अच्छा रहता है।
विभाग ने बागवानी निदेशालय के आदेश पर कुल्लू के लिए ये पौधे मंगवाए हैं। ट्रायल कामयाब रहा तो इन प्रजातियों के पौधों की बड़े पैमाने पर नर्सरी तैयार कर हर वर्ष बागवानों को पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे।
बागवानी विभाग के उपनिदेशक बीसी राणा ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण कुल्लू के निचले एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों में सेब की परंपरागत किस्में उत्पादन के लिहाज से उपयोगी नहीं रह गई हैं। इटली से जो पौधे मंगवाए गए हैं, उनकी चिलिंग रिक्वायरमेंट काफी कम हैं, जिस कारण कुल्लू की जलवायु के लिए ये काफी अनुकूल हैं। उन्होंने कहा कि रेड ब्लॉक्स और जेरो माइन प्रजाति के सेब के 5000 पौधे इटली से मंगवाए गए हैं। इन्हें इसी वर्ष सर्दियों में रोपने के लिए बागवानों को उपलब्ध कराया जाएगा।