नई दिल्ली। रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए नोटों की संख्या तथा मूल्य के आंकड़ों का हिसाब मेल नहीं खा रहा है। हिसाब में फर्क भी छोटा मोटा नहीं, खरबों रुपये का है। तो क्या रिजर्व बैंक, वास्तव में उसने जितने नोट छापे हैं, उनसे ज्यादा छापने का दावा कर लोगों की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है? या फिर नए गवर्नर के राज में रिजर्व बैंक इतना अकुशल हो गया है कि सही आंकड़े तक नहीं दे सकता?
रिजर्व बैंक ने 500 तथा 1000 रुपये के पुराने नोटों की नोटबंदी के बाद 5.93 लाख करोड़ रुपये के नोट जारी करने का दावा किया था। लेकिन अगर हम रिजर्व बैंक के ही विभिन्न प्रेस नोटों के अनुसार उसके द्वारा छापे या जारी किए गए नोटों के शुद्ध मूल्य का हिसाब लगाएं तो हमें सिर्फ 5.27 लाख करोड़ रुपये का हिसाब मिलता है। 5.93 लाख करोड़ रुपये में से लगभग 63,000 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं मिल रहा है।
रिजर्व बैंक ने गत दिसंबर माह में ही पुराने बंदशुदा नोटों के बैंकों के पास लौट आने के आंकड़े जारी करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही उसने पुराने नोटों की जगह लेने के लिए जारी किए गए नए नोटों क संख्या तथा मूल्य के आंकड़े देना भी शुरू किया था।
रिजर्व बैंक की 7 दिसंबर को जारी एक प्रेस रिलीज में (बाद में रिजर्व बैंक ने इस प्रेस रिलीज को अपनी वैबसाइट से हटा दिया था) कहा गया था कि उसने 10 नवंबर से 5 दिसंबर के बीच 3.8 लाख करोड़ रुपये के नोट जारी किए थे। इसके अलावा 1.06 लाख करोड़ रुपये अपेक्षाकृत छोटी रकम के नोटों में जारी किए गए थे। इन नोटों की कुल संख्या 1910 करोड़ थी। शेष राशि के 2000 तथा 500 रुपये के नोट जारी किए गए थे।
इसके बाद 22 दिसंबर को रिजर्व बैंक ने एक और प्रेसनोट जारी किया, जिसमें नए ही आंकड़े दिए गए थे। इस प्रेसनोट के अनुसार 10 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच रिजर्व बैंक ने कुल 5.93 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा जारी की थी। इस प्रेसनोट में यह भी कहा गया था कि इस राशि में अपेक्षाकृत कम रकम के 2020 करोड़ नोट शामिल थे और बड़ी रकम के लगभग 220 करोड़ नोट शामिल थे।
इसका अर्थ यह हुआ कि बैंक ने 7 दिसंबर के बाद छोटी रकम के 110 करोड़ नोट जारी किए थे (बाद की 2020 करोड़ और पहले के 1910 करोड़ रुपये की संख्याओं में अंतर के बराबर)। बहरहाल, हम अगर यह भी मान लें कि ये सारे अतिरिक्त नोट 100 के ही रहे होंगे, तब भी इसका मतलब 0.11 लाख करोड़ रुपये की रकम का इजाफा होगा। इस तरह 22 दिसंबर तक जारी कम रकम के नोटों का कुल मूल्य 1.17 लाख करोड़ से ज्यादा नहीं हो सकता।
अब अगर रिजर्व बैंक ने 19 दिसंबर तक 5.9 लाख करोड़ के नोट जारी करने का दावा किया था, उनमें से 1.17 लाख करोड़ रुपये छोटी रकम के नोटों में थे तो 4.73 लाख रुपये की राशि (5.9 लाख करोड़ में से 1.17 लाख करोड़ घटाकर) के नोट बड़ी रकम के होने चाहिए।
बहरहाल, रिजर्व बैंक का 22 दिसंबर का प्रेसनोट कहता है कि बड़ी रकम के 2.2 अरब नोट जारी किए गए थे। अब अगर इनमें से सारे के सारे नोट 2000 रुपये के ही मान लिए जाएं तो तब भी यह रकम 4.4 लाख करोड़ की बैठती है। यानी 33,000 करोड़ रुपये (4.73 लाख करोड़ रुपये और 4.4 करोड़ रुपये का अंतर) का हिसाब नहीं मिल रहा है।
वास्तव में जिस रकम का हिसाब नहीं मिल रहा है, वह इससे कहीं ज्यादा रकम बैठेगी। सभी जानते हैं कि रिजर्व बैंक कम मात्रा में ही सही 2000 रुपये के नोट के साथ ही 500 रुपये के नोट भी जारी कर रहा था। वास्तव में राज्यसभा में एक नए छप रहे नोटों के अनुपात के संबंध में एक गैर तारांकित प्रश्न के उत्तर में वित्त राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने 6 दिसंबर को एक लिखित उत्तर में जो आंकड़े दिए थे, उससे पता चलता था कि 29 नवंबर तक नए- नए छपकर आए नोटों की संख्या में करीब 9 फीसद 500 रुपये के और शेष 2000 रुपये के थे।
अब यदि हम इसी अनुपात को आधार बनाएं और मानें कि 22 दिसंबर तक आए बड़ी रकम के नोटों में 10 फीसद 500 रुपये के तथा 90 फीसद 2000 के रहे होंगे, तब 500 के नोटों की संख्या 20 करोड़ बैठती है और 2000 के नोटों की संख्या 200 करोड़ रुपये। इससे इन नोटों का कुल मूल्य 4.1 करोड़ रुपये हो जाता है- 2000 रुपये के नोटों में 4 लाख करोड़ रुपये के नोट और 500 रुपये के नोटों में 0.1 लाख करोड़ रुपये के नोट। असल बात यह है कि शेष 63 हजार करोड़ रुपये के नोटों का क्या हुआ, जो रिजर्व बैंक के दावे के अनुसार उसने जनता को मुहैया कराए थे?
क्या रिजर्व बैंक, वास्तव में उसने जितने नोट छापे हैं उससे ज्यादा छापने का दावा कर लोगों की आंखों में धूल झोंकने की कोशश कर रहा था? या फिर नए गवर्नर के राज में रिजर्व बैंक इतना अकुशल हो गया है कि सही आंकड़े तक नहीं दे सकता है?
(लोकलहर में प्रकाशित अर्थशास्त्री के. श्रीनिवास की रिपोर्ट)