देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले अधिकांश विद्वानों का मानना है कि राज्य में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में ‘तीसरे दल’ को बहुमत मिलने की संभावना है। खबर है कि गढ़वाल केंद्रीय विश्व विद्यालय में वीरवार को ‘उत्तराखंड की राजनीति एवं 2022 के चुनाव’ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन हुआ, जिसमें अनेक विद्वानों ने अपने आकलन प्रस्तुत किए।
वेबिनार में वक्ताओं ने प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता को आम जनता की चिंता का सबसे बड़ा कारण माना और कहा कि इसी कारण इस बार के चुनाव में ‘तीसरे दल’ को बहुमत मिलने की प्रबल संभावना है। राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बाद वो कौन तीसरा दल है? कहीं आम आदमी पार्टी तो नहीं..?
कार्यक्रम का शुभारंभ गढ़वाल विवि की कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने किया। उन्होंने कहा कि दो दशकों से राज्य में नारायण दत्त तिवारी के अतिरिक्त कोई भी मुख्यमंत्री अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है, जिससे राज्य में राजनीतिक अस्थिरता लगातार बनी हुई है। यह अस्थिरता आम जनता को बहुत अखर रही है।
वेबिनार के मुख्य वक्ता पूर्व निदेशक सीएसडीएस एवं सह निदेशक लोकनीति प्रोग्राम नई दिल्ली के प्रो. संजय कुमार ने कहा कि वर्ष 2002 से 2017 तक के चुनावी आंकड़े बताते हैं कि आगामी चुनाव में यहां अब तीसरी पार्टी के आने की संभावना अधिक है। उन्होंने कहा कि राज्य के करीब 50 प्रतिशत लोग तीसरे विकल्प की तलाश में हैं। राज्य में अभी तक का यह भी अनुभव है कि तीसरे विकल्प ने यहां कभी भी सटीक तरीके से स्वयं को जनता के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया, जिस कारण मतदाताओं को मजबूरन भाजपा और कांग्रेस को ही चुनते रहना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि इस बार यदि कोई दल विश्वसनीय तरीके से स्वयं को विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है तो जनता उसे हाथों हाथ स्वीकार करेगी। उन्होंने संकेतों में आम आदमी पार्टी को राज्य में तीसरा विकल्प बताया।
वेबिनार में डा. राकेश नेगी, प्रो. संजय कुमार, प्रो. आरएन गैरोला, प्रो. हिमांशु बौड़ाई, प्रो. एमएम सेमवाल, प्रो. मनमोहन नेगी, प्रो. अरुण बहुगुणा, प्रो. राकेश कुंवर, डा. जेपी भट्ट, डा. नरेश कुमार, डा. मनोज कुमार व राधिका नेगी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।