बागेश्वर। पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद सरकारी उपेक्षा के चलते बागेश्वर जनपद की 24 बिरोजा फैक्ट्रियां बंद हो गई
पर्वतीय क्षेत्रों में चीड़ के वृक्षों से निकलने वाले रस (राल) पर आधारित इन फैक्ट्रियों को पहले वन विभाग से सीधे राल की आपूर्ति होती थी, जिससे ये इकाइयां काफी अच्छे ढंग से चल रही थीं और इनमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला था। लेकिन नया राज्य बनने के बाद सरकार के किसी सिरफिरे अधिकारी ने राल की आपूर्ति का नियम बदल दिया। अब वन विभाग पहाड़ से राल एकत्रित कर नीचे काठगोदाम डीपो भेज देता है। बाद में वहीं पर उसकी नीलामी होती है और फिर राल को वापस पहाड़ पर फैक्ट्रियों तक लाना होता है, जिसमें काफी समय और ढुलाई भाड़ा लग जाता है। ऐसे में घाटे का सौदा होने के कारण बिरोजा इकाइयों ने काठगोदाम से राल खरीदने में दिलचस्पी लेनी ही बंद दी। परिणाम स्वरूप धीरे- धीरे ये 24 इकाइयां भी बंद हो गईं। फैक्ट्री संचालकों ने नए नियमों के फेर में फंसने की बजाय इकाइयों को बंद करना ही बेहतर समझा।
दिलचस्प बात यह है कि इतना नुकसान होने के बावजूद वन विभाग ने कभी भी नियमों में संशोधन कर इन इकाइयों को पुनर्जीवित करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। बिरोजा अनेक दवाइयों में प्रयुक्त होने के साथ- साथ चमड़ा उद्योग और पेंट उद्योग में भी काम आता है। इन उद्योगों में बिरोजे की भारी मांग है।
डीएफओ बागेश्वर एके उपाध्याय से इस संबंध में बात की गई तो उनका भी कहना था कि नए नियमों के मुताबिक अब राल की आपूर्ति सीधे बिरोजा फैक्ट्रियों को नहीं की जा रही है। ये इकाइयां काठगोदाम में चलने वाली नीलामी में भाग नहीं लेती हैं, जिस कारण उन्हें कच्चा माल नहीं मिल पा रहा। इसी कारण ये इकाइयां बंद हुई हैं।