नई दिल्ली। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि निजी कंपनियों को बिना बोली के कोयले की खानें मिलने से उन्हें 1.86 लाख करोड़ का
उधर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने कहा कि वो कैग के आकलन से सहमत नहीं हैं और जिस तरीके से कोयले की खानें कंपनियों को दी गईं, उसमें कुछ भी गलत नहीं था। इससे पहले लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि वो खुद इस घाटे के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि कथित घोटाले के दौरान उनके पास कोयला मंत्रालय का कार्यभार था। वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण नेहरू ने तो इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सीधे त्यागपत्र की मांग कर डाली है।
समाजिक कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री से प्रश्न करते हुए कहा कि वे इस मामले में एफआईआर दर्ज करने अब किस के पास जाएं?
शुक्रवार को संसद में पेश हुई कैग की रिपोर्ट के मुताबिक एसार पावर, हिंडाल्को, टाटा स्टील, टाटा पावर, जिंदल स्टील एंड पावर सहित 25 कंपनियों को विभिन्न राज्यों में कोयले की खानें दी गईं। कैग ने कहा कि बोली के आधार पर खान देने की प्रक्रिया की शुरुआत में देरी से निजी कंपनियों को फायदा हुआ। जांच के मुताबिक निजी कंपनियों को इससे 1.86 लाख करोड़ा का आर्थिक फायदा हुआ।”
कैग ने कहा कि इस आंकड़े का आधार वर्ष 2010-11 में खानों की औसत उत्पादन लागत और औसत बिक्री लागत है। कैग ने कहा, ”अगर बोली के आधार पर खानों को देने की प्रक्रिया की शुरुआत सालों पहले हुई होती तो इस आर्थिक फायदे का इस्तेमाल राष्ट्रीय खजाने के लिए किया जा सकता था।”
कैग ने कहा कि कड़े कदम उठाए जाने चाहिए ताकि सस्ते कोयले का फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंचे। बताया जाता है कि बोली के आधार पर कोयले की खानों को देने की घोषणा वर्ष 2004 में की गई थी, लेकिन सरकार ने अभी तक कार्य प्रणाली पर अंतिम निर्णय नहीं लिया है।
कोयले की दलाली में लुटे 1.86 लाख करोड़, विपक्ष आक्रामक
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