मंडी। प्रदेश सरकार ने मंडी जिला में धाडता क्षेत्र को सरकाघाट तहसील से काट कर संधोल तहसील में मिलाने के लिए
मित्रो,
हिमाचल प्रदेश सरकार का एक तुगलकी फ़रमान आया है, जिसने धाडता क्षेत्र की लगभग 9 पंचायतों के निवासियों को बैचैन कर दिया है… मैं इसको वर्तमान सरकार का तुगलकी फ़रमान ही कहूँगा क्योंकि इसी तरह का फ़रमान तुर्की-मुस्लिम शासक मुहम्मद बिन तुगलक़ ने सन 1327 इ० में तब दिया था जब उसने अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर देओगिरी (दौलताबाद) ले जाने का फैसला किया था और भारी संख्या में जनता के विरोध के बावजूद, दिल्ली की जनता को देवगिरी (दौलताबाद) स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया था… मित्रो, इतिहास में इस घटना को विचार रहित और दुर्बुधि से भरा फ़ैसला बताया गया है क्योंकि देवगिरी (दौलताबाद) की दूरी दिल्ली से 1500 किलोमीटर है और रास्ते बेहद ख़राब, देवगिरी में न पीने के पानी की सही व्यवस्था थी, न ही खाने की सामग्री का उचित प्रबन्ध और ऊपर से बादशाह का फ़रमान… इसका जो परिणाम हुआ वो बेहद ख़तरनाक और दर्दनाक था… जब बादशाह मुहम्मद तुगलक ने जनता पर जोर-जुल्म किया तो जनता मजबूरन देवगिरी (दौलताबाद) की ओर चल पड़ी, बहुत सारे लोग रास्ते में ही भूखे-प्यासे, बीमारी और थकाबट से मर गये। जब मुहम्मद तुगलक़ का काफ़िला दौलताबाद पहुंचा तो उस काफ़िले में एक घोड़ा भी था, परन्तु उस घोड़े पर कोई सवार नहीं था, जब उसके सवार को ढूंढ़ने का प्रयास किया गया तो देखा गया कि उस घोड़े की काठी के नीचे बंधी डोर (जिस पर घुड़सवार अपने पैर रखता है) में टांग की एक हड्डी फंसी हुई थी… मतलब उस घोड़े पर बैठा हुआ व्यक्ति रास्ते में ही कहीं मर चुका था और उसका शरीर गलता-सड़ता रहा, उसके शरीर की हड्डियाँ रास्ते में ही बिखर कर गिरती रही, बस एक हड्डी,,, एक हड्डी बची, जो रस्सी में अटकी रह गई थी… शायद ज़माने को यह बताने के लिए कि जो जनता बादशाहों-राजाओं-रजवाड़ों-शासकों-सरकारों के गलत और जनविरोधी फैसलों का विरोध नहीं करती, उसके खिलाफ संघर्ष करके फ़ैसले को ठीक नहीं करवाती, उस जनता का यही परिणाम होता है….
धाडता क्षेत्र को सन्धोल तहसील में मिलाना वर्तमान प्रदेश सरकार का तुगलकी फ़रमान की तरह ही विचारहीन और मूर्खतापूर्ण फ़ैसला है और इन दोनों विषयों में समानता है… धाडता की सधोट पंचायत से वर्तमान तहसील व् उपमंडलीय मुख्यालय सरकाघाट की दूरी पैदल रास्ते से 3 किलोमीटर और सड़क मार्ग से मात्र 6-7 किलोमीटर है… सरकाघाट रोज बच्चे स्कूल-कॉलेज पढने अपने घर से पैदल व बस द्वारा जाते हैं, सारे विभागीय कार्यालय व न्यायालय सरकाघाट हैं… रास्ता सुगम व सुपरिचित है, बच्चा-बूढ़ा-महिला-जवान सभी निसंकोच सरकाघाट जाकर अपने वांछित कार्य सुगमता से करवाते आये हैं और करवा सकते हैं….. जबकि दूसरी तरफ सन्धोल की दूरी सधोट से वाया गद्दीधार 45 किलोमीटर और बाया धर्मपुर 60 किलोमीटर है, रास्ता दुर्गम है, बीच में बाकर खड्ड है, जिसे बरसात में पार करना असम्भव है, सधोट पंचायत व अन्य धाडता की 95% जनता ने अपने जीवनकाल में सन्धोल देखा तक नहीं है… फिर वे अपने छोटे-मोटे तहसील स्तर के कार्य करवाने सन्धोल कैसे जायेंगे ? और उन्हें क्यों जाना चाहिए ?
क्या उन्हें इसलिए जाना चाहिए कि वर्तमान सरकार विचारहीन और बुद्धिहीन लोगों का जमावड़ा है ?
क्या उन्हें इसलिए जाना चाहिए कि यह किसी राजा-रजवाड़े का फ़ैसला है ?
क्या उन्हें इसलिए जाना चाहिए कि अभी भी तुर्क शासक मुहम्मद तुगलक़ का शासनकाल चल रहा है और सुलतान का फ़रमान प्राण देकर भी मानना पड़ेगा ?
नहीं मित्रो, हम सरकार के इस आदेश, इस अधिसूचना का पुरजोर और तीव्र विरोध करते हैं और करेंगे, जब तक हि०प्र० सरकार इस फैसले को रद्द नहीं करेगी, हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे और हर मोर्चे पर, हर स्तर पर जायेंगे और अपने अधिकार की लडाई लड़ेंगे…. क्योंकि हम लोकतान्त्रिक व्यवस्था में रहते हैं, देश आज़ाद हो चुका है, अब सरकारें मनमाने फैसले नहीं कर सकतीं, अब सरकारों को जनता की अपेक्षा-आकांक्षाओं के अनुरूप फैसले लेने होंगे…
हमें सन्धोल तहसील बनने का कोई ऐतराज नहीं है, सन्धोल तरक्की करे इसके लिए हम सन्धोल के साथ खड़े हैं, वहां तहसील ही नहीं उप-मंडल बने, अच्छे से अच्छे और बड़े से बड़े कार्यालय खुलें, हम इसका समर्थन करते हैं परन्तु जो क्षेत्र सन्धोल के आस-पास का हो, जहाँ की जनता को सन्धोल जाने में सुगमता हो, उस क्षेत्र को सन्धोल में मिलाया जाए… मेरा, मेरे सन्धोल के मित्रों से करबद्ध निवेदन है कि वे भी सरकार के इस तुगलकी फ़रमान के विरुद्ध धाडता की जनता का समर्थन करें और सहयोग व साथ दें !
जय हिन्द, वन्देमातरम !
आपका अपना
दलीप सकलानी !