राजधानी शिमला में फैले पीलिया को लेकर बस में गर्मागरम बहस चल रही थी। पीछे की सीट से एक यात्री ने तल्ख होते हुए कहा, “
मैंने आंखों ही आंखों में दोनों यात्रियों की उम्र का जायजा लिया। दोनों ने ही देश में अंग्रेजों का शासन नहीं देखा था। तो फिर वे किस आधार पर अंग्रेजों के राज को बेहतर बता रहे थे। निश्चित रूप से यह जुमला उन्होंने अपने बुजुर्गों से ही अंगीकार किया होगा।
शिमला को अंग्रेजों ने बड़े यत्न से बसाया व संवारा था। स्थानीय लोगों ने उस समय अंग्रेजी हुकूमत को काफी नजदीक से महसूस किया होगा। मुझे याद है आजादी के कुछ ही दशक बाद हमारे बुजुर्ग कहने लग पड़े थे, “भाई इससे तो अंग्रेजों का राज ही अच्छा था।” हम नई पीढ़ी के लोगों को यह बुरा लगता था। बुजुर्गों को शांत करने के लिए हमारे पास यही तर्क होता कि हम पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और अब आजाद देश में रहते हैं, जो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। जवाब में बुजुर्ग कहते, “तुम छोकरों ने देखा ही क्या है। अंग्रेज नियम के पक्के थे। लोगों में कानून का डर होता था। महिला किलोभर सोने के जेवर पहन कर भी कहीं भी अकेली जा -आ सकती थी। लेकिन अब तो जंगलराज है…।”
आज अंग्रेजों के बसाये इसी शहर में सरकारी अमला पिछले करीब एक दशक से लोगों को सरेआम सीवरेज का पानी पिला रहा है। हर वर्ष पीलिया, उल्टी- दस्त, आंत्रशोथ जैसे जलजन्य रोगों का प्रकोप रहता है। इन दिनों भी यहां पीलिया ने जानलेवा रूप धारण कर रखा है। अनेक जानें जा चुकी हैं। मरीजों की अस्पतालों में जितनी भीड़ है उससे कहीं अधिक झाड़फूंक करने वालों के ठिकानों पर है। लेकिन फिर भी इसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार ही नहीं। हमेशा की तरह लीपापोती चल रही है।
कोई तो सरकार से पूछे कि क्या राजधानी में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित बनाने के लिए किसी राकेट साइंस की जरूरत है? मामूली सा तो काम था। स्थापित ट्रीटमेंट प्लांट्स को कुछ अपग्रेड करने की जरूरत थी, वहां जिम्मेदार स्टाफ तैनात करने की जरूरत थी जो पानी के शुद्धिकरण का काम सही ढंग से करता। इसके अतिरिक्त पब्लिक को सप्लाई किए जा रहे पानी की नियमित रूप से जांच की व्यवस्था करनी थी,…बस इतना ही। …तो क्या शहर की जनता को अब अपनी सरकारों से इतनी भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए? यहां जनता से वोट लेने के बाद
सरकारों ने बस इतना ही किया कि इस संवेदनशील कार्य की सारी जिम्मेदारी चंद लंपट नौकरशाहों और मुंहलगे ठेकेदारों के हवाले कर दी। जनता पिछले कई वर्षों से पेयजल व्यवस्था में सुधार के लिए चिल्ला रही है, लेकिन सरकारें हरकत करती नजर नहीं आईं। जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। शिमला में फैला पीलिया किसी प्रशासनिक भूलचूक का परिणाम नहीं, बल्कि एक घोर आपराधिक कृत्य है।
…इस हालत में शहर के उन बुजुर्गों, जिन्होंने वास्तव में ही अंग्रेजी हुकूमत को देखा था, से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि यदि आज यहां अंग्रेजों का शासन होता तो भी क्या पेयजल को लेकर इसी तरह की कुव्यवस्था देखने को मिलती? जनता के स्वास्थ्य से खेलने वाले क्या इसी तरह बेखौफ दनदनाते फिरते या उनकी जगह सींखचों के पीछे होती?
एक सवाल सत्ताधीशों से भी है- आज यदि कहीं लोग यह कहते मिल जाएं कि ‘इससे तो अंग्रेजों का राज ही अच्छा था’ तो उन्हें क्या कह कर शांत किया जाए? है कोई जवाब?