कुल्लू। कुल्लू जिला के निचले क्षेत्रों में बागवानों को सेब के स्थान पर अनार की खेती का विकल्प रास आने लगा है। इस बार मंडियों में जिस प्रकार सेब की
यहां गांव कुट्टी के शमशेर सिंह ने कुछ वर्ष पूर्व अपनी साठ बीघा भूमि में सेब का पुराना बागीचा उखाड़ कर अनार के पौधे लगाए थे। चार वर्ष में ही उनमें फल लगना शुरू हो गए। पिछले वर्ष शमशेर सिंह ने करीब सोलह लाख रुपये के अनार बेचे। शमशेर सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण उनके सेब के बागीचे में उत्पादन बहुत घट गया था। बागवानी विशेषज्ञों से परामर्श के बाद उन्होंने सेब के पुराने पौधे उखाड़ कर अनार का बागीचा लगाया। शमशेर सिंह के अनुसार उन्हें लगता है कि कुल्लू घाटी के लिए यह एक सफल प्रयोग है।
इसी प्रकार बजौरा के विनोद कुमार ने भी चार वर्ष पूर्व अनार के करीब सौ पौधे लगाए थे। बीते वर्ष उन्होंने करीब तीस हजार का अनार बेचा। इस सीजन में उन्हें करीब पचास हजार आय की उम्मीद है। पिछले तीन-चार वर्षों में कुल्लू जिले में लोगों ने बड़े पैमाने पर अनार के पौधों का रोपण किया है। हो सकता है आने वाले कुछ वर्षों में यहां उत्पान के मामले में भी अनार सेब को टक्कर दे दे।
उद्यान विभाग के उपनिदेशक बीसी राणा ने बताया कि निचले इलाकों में बागवानों को सेब के विकल्प के रूप में अनार लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जिले में इस समय करीब चार सौ हेक्टेयर भूमि पर अनार की खेती हो रही है। यहां अनार की प्रमुख किस्में काबुल कंधारी और सिंधुरी उगाई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि बागवानी तकनीकी मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत अनार लगाने के लिए बागवानों को प्रति हेक्टेयर तीस हजार रुपये तक की सब्सिडी भी दी जा रही है।
विपणन बोर्ड की स्थानीय मंडियों में इस वर्ष सेब के मुकाबले अनार के दोगुना दाम मिल रहे हैं। लाल अनार ने रसीले सेब को बुरी तरह पछाड़ दिया है। सेब के दाम लुढ़कने से बागवानों में हड़कंप मचा हुआ है और वे अनार की बागवानी की बातें करने लगे हैं।
विपणन बोर्ड के सचिव प्रकाश कश्यप भी कहते हैं कि इस बार स्थानीय मंडियों में सेब 10 से 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता रहा, जबकि अनार 50 रुपये प्रति किलो से नीचे नहीं उतरा। अनार की खरीद के लिए बाहर से आए व्यापारियों में भी खूब कंपीटीशन दिखा। गत वर्ष कुल्लू जिले में अनार की 900 मीट्रिक टन फसल हुई थी। इस वर्ष फसल काफी कम है, लेकिन दाम अच्छे मिल रहे हैं।