शिमला। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की आपसी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रदेश कांग्रेस में जहां पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह किसी के काबू में नहीं हैं, वहीं भाजपा में शांता कुमार के कारण पार्टी को लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा के इन दोनों दिग्गजों पर लगाम लगाना आलाकमान के बस से भी बाहर होने लगा है। दोनों नेताओं के अपनी-अपनी डफली और अपने-अपने राग हैं।
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हिमाचल प्रदेश में चुनावी साल में कांग्रेस को विरोधियों से कम और अपनों से ज्यादा खतरा उत्पन्न हो गया है। राहुल गांधी के कुल्लू से कूच करने के तुरंत बाद वीरभद्र सिंह ने अपनी ही पार्टी के नेता कौल सिंह ठाकुर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। एक प्रेस कांफ्रेंस में वीरभद्र सिंह ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर पर खुलकर हमला बोला, जिससे राहुल गांधी के कुल्लू प्रवास के मकसद पर भी पानी फिर गया। राहुल गांधी के इस प्रवास का मकसद पार्टी में गुटबाजी खत्म करना था, जिस पर वीरभद्र सिंह के बयान ने पलीता लगा दिया।
वीरभद्र सिंह ने कौल सिंह ठाकुर की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी का खुलेआम विरोध किया। उनका कहना था कि पार्टी अध्यक्ष को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से दूर रहना चाहिए। वीरभद्र सिंह ने आरोप लगाया कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर अपने लोगों को महत्व देकर पार्टी के कर्मठ व वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा कर रहे हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा, ”कौल सिंह ऐसा करके मुझे नीचा दिखाना चाह रहे हैं। वे अपने लोगों को तरजीह देकर पार्टी में अपनी अलग फौज खड़ी करना चाहते हैं।”
वीरभद्र सिंह ने कौल सिंह के साथ-साथ कांग्रेस के एक अन्य नेता पूर्व मंत्री जी.एस. बाली पर भी हमला बोला। बाली के बारे पूछे गए एक प्रश्न पर वीरभद्र सिंह ने कहा कि बाली दौडऩा चाह रहे हैं, लेकिन पहले ठीक से चलना तो सीख लें।
वीरभद्र सिंह के तेवरों से साफ है कि वे आलाकमान के दबाव में आकर किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं हैं। वे शुरू से ही चुनावों से पहले नेता घोषित करने की मांग पर अड़े हुए हैं। कुल्लू में भी उन्होंने अपनी यह मांग दोहराई और कहा, ”नेता जनता तय करती है, जबकि कौल सिंह ठाकुर बार-बार यह कह रहे हैं कि नेता श्रीमती सोनिया गांधी ही तय करेंगी।” इससे साफ हो गया है कि चुनावों तक प्रदेश कांग्रेस का महाभारत सड़कों तक पहुंच जाएगा, जो पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
दूसरी ओर प्रदेश भाजपा में जारी घमासान भी थमने का नाम नहीं ले पा रहा है। यहां भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार रूठे हुए हैं। उनके सिपहसालारों ने खुलेआम मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ बगावत का झण्डा उठा रखा है। शांता कुमार के खासमखास रोहड़ू़ के विधायक खुशीराम बालनाहटा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी को पत्र लिखकर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ पहले भाजपा के सांसद राजन सुशांत ने हल्ला बोला। उसके बाद पूर्व भाजपा सांसद महेश्वर सिंह, पूर्व मंत्री राधारमण शास्त्री व महेन्द्र नाथ सोफ्त आदि ने धूमल विरोधी झण्डा उठा लिया और अंतत: भाजपा छोड़ नए दल का गठन कर लिया। उसके बाद अचानक खुशीराम बालनाहटा मैदान में कूद पड़े। ये सभी नेता भाजपा दिग्गज शांता कुमार के खासमखास माने जाते हैं। इससे सीधा संदेश गया कि शांता कुमार और मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल में सियासी कटुता चरम पर पहुंच चुकी है। भाजपा आलाकमान के गुटबाजी खत्म करने के प्रयास भी धरे के धरे रह गए हैं।
प्रदेश में हालात ऐसे बन गए हैं कि यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों को दुश्मनों की जरूरत नहीं है। प्रदेश कांग्रेस में यह काम वीरभद्र सिंह बखूबी निभा रहे हैं और भाजपा में शांता कुमार के तेवरों से भी सभी हैरान हैं। अभी चुनाव को करीब चार महीने बाकी हैं। देखना यह है कि विरोध के सुरों के साथ कांग्रेस और भाजपा के यह दोनों धुरंधर आने वाले समय में क्या-क्या राग अलापते हैं।
(लेखक न्यूज़ चैनल ‘हिमाचल आजकल’ के संपादक हैं।)