देहरादून। उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार पर्वतीय क्षेत्रों में पैठ बढ़ाने के लिए भांग की खेती को लाइसेंस जारी करने का निर्णय लिया है। सरकार ने शासनादेश जारी कर उत्तराखंड स्वापक औषधि और मन: प्रभावी अधिनियम-1985 की धारा-14 में राज्यपाल को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भांग की खेती की सशर्त अनुमति प्रदान की है। अब राज्य में कोई भी व्यक्ति लाइसेंस लेकर सशर्त भांग की खेती कर सकता है। लाइसेंस केवल भांग के बीज और रेशा प्राप्त करने के लिए दिया जाएगा, लेकिन यह सभी जानते हैं कि मात्र इन कार्यों के लिए कोई भांग की खेती क्यों करेगा?
कुमाऊं मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों के साथ ही गढ़वाल मंडल के चकराता, पुरौला आदि इलाकों में बड़े पैमाने पर भांग की खेती होती रही है और इससे केवल बीज और रेशा ही तैयार नहीं, बल्कि चरस भी तैयार की जाती है। इन दूरस्थ क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में जंगली जानवरों का प्रकोप बढञ जाने के कारण लोगों की खेतीबाड़ी चौपट हो गई है और उन्हें मजबूरन भांग की खेती अपनानी पड़ी। भांग के बीज का प्रयोग चटनी व शाक सब्जी में स्वाद बढ़ाने के तौर पर किया जाता है, जबकि इसके रेशों की रस्सियां बनाने के लिए काफी मांग रहती है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार ने अक्तूबर 2015 में ही पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को भांग का लाइसेंस देने का वादा किया था, जिसे अब ठीक चुनाव से पूर्व पूरा कर लिया गया है। शासनादेश के अनुसार स्वयं की जमीन अथवा पट्टाधारक को ही भांग के पौधे की खेती की अनुमति प्रदान की जाएगी। जिस व्यक्ति के नाम जमीन होगी, वह किसी वाणिज्यिक व औद्योगिक इकाई के साथ साझेदारी में भांग की खेती के लिए आवेदन कर सकता है।
नैनीताल के डीएम दीपक रावत ने कहा कि शासन की ओर से भांग की खेती से संबंधित जारी शासनादेश प्राप्त हो गया है। इसके अनुसार भांग की खेती के लाइसेंस दिए जाएंगे। इस संबंध में प्रक्रिया आवेदन मिलने के साथ ही शुरू होगी।