शिमला। संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख घटक अखिल भारतीय किसान सभा की राज्य इकाई हिमाचल किसान सभा ने किसान विरोधी और कारपोरेटपरस्त कृषि कानूनों को वापिस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर खुशी जताई है और इसे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत करार दिया है। किसान सभा ने यह भी स्पष्ट किया है कि संसदीय प्रक्रिया के माध्यम से जब तक इन कानूनों की वापसी नहीं हो जाती, किसान अपना मोर्चा खत्म नहीं करेंगे।
किसान सभा ने जोर देकर कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए प्रदेश में भी संघर्ष जारी रहेगा। संघर्ष का क्या स्वरूप होगा और क्या तरीके होंगे, इसका फैसला संयुक्त किसान मोर्चा के दिशानिर्देशों के बाद ही तय किया जायेगा।
हिमाचल किसान सभा के पूर्व महासचिव एवं ठियोग से माकपा विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि सरकार ने किसान आंदोलन को बदनाम करने में कोई कोर- कसर बाकी नहीं रखी। उन्हें आतंकवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी तक कहा गया। आंदोलन को हरियाणा- पंजाब, सिख- जाट, अमीर किसान- गरीब किसान के बीच बांटने की कोशिश की गई। लेकिन किसान एकजुट रहे और अंततः सरकार को घुटने टेकने पड़े।
सिंघा ने कहा कि किसानों को ये नहीं भूलना चाहिए कि केंद्र सरकार लखीमपुर खीरी कांड सहित लगभग 700 किसानों की हत्यारी है। किसानों को एकजुट होकर स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक C2+50% के आधार पर लाभकारी मूल्य की अपनी लड़ाई को जारी रखना चाहिए।
किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में किसानी के कई मुद्दे बाकी हैं, जिन पर किसानों को राष्ट्रीय आंदोलन की तर्ज पर संघर्ष करना होगा। हिमाचल में अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है। जिन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया भी गया है, किसान उससे भी वंचित हैं। प्रदेश में अनाज की खरीद के लिए नियमित मंडियां अभी तक स्थापित नहीं हुई हैं। फतेहपुर (कांगड़ा) मंड के किसान इसका खामियाज़ा झेल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के किसान जम्मू- कश्मीर की तर्ज पर सेब के लिए एमआईएस मांग रहे हैं। सब्ज़ियों के लिए न तो समर्थन मूल्य मिलता है और न ही प्राकृतिक आपदा में नष्ट होने पर उचित मुआवज़ा। बागवानी सहित सब्ज़ियों और फसलों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी सरकार ने समाप्त कर दी है। डॉ. तंवर ने कहा कि राष्ट्रीय किसान आंदोलन ने हिमाचल के किसानों में एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है।