तिरुअनंतपुरम। बड़े औद्योगिक घरानों ने निजी स्वार्थ साधने के लिए सरकारों व प्रशासन ही नहीं बल्कि ग्राम संभाओं तक को टेकओवर करना शुरू कर दिया है, जिसके आने वाले समय में काफी अनिष्टकारी परिणाम आने की आशंका है। केरल के एर्नाकुलम जिले में एक निजी कंपनी को ग्राम पंचायत से औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने के लिए पर्यावरण प्रभावों के आधार पर इजाजत नहीं मिली तो उसने अगले चुनाव में पंचायत के सभी वार्डों में अपने उम्मीदवार खड़े कर उन्हें धनबल के प्रभाव से जिता दिया। देश में स्थानीय निकाय के कार्पोरेट टेकओवर का पहला मामला है।
किटैक्स ग्रुप नाम की एक निजी कंपनी केरल में एर्नाकुलम जिले के अंतर्गत किझक्कम्बलम ग्राम पंचायत के क्षेत्र में कुछ औद्योगिक इकाइयां लगाना चाहती है। पिछली ग्राम पंचायत ने पर्यावरण प्रभावों के आधार पर कंपनी को इसके लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) नहीं दिया, जोकि औद्योगिक परियोजना लगाने के लिए जरूरी था।
लेकिन कंपनी ने हार नहीं मानी। वह किसी भी कीमत पर वहां उद्योग लगाना चाहती है। कंपनी ने पंचायत के अगले चुनाव में सभी वार्डों में अपने उम्मीदवार खड़े का निर्णय लिया। इसके लिए उसने पहले ‘ट्वंटी-20’ नाम से एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) खड़ा किया और उसके माध्यम से ग्राम पंचायत के सभी 19 वार्डों में अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। इसमें 17 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई। चुनाव जीतने के लिए कंपनी ने वहां विभिन्न सुविधाएं जुटाने के लिए काफी पैसा खर्च किया। …और इस तरह उसने आसानी से एक स्थानीय निकाय को ही टेक ओवर कर लिया।
बहरहाल चुनावी प्रक्रिया में इस तरह कार्पोरेट क्षेत्र के हस्तक्षेप को लेकर अनेक सवाल उठ रहे हैं। किसी भी बड़ी कंपनी के लिए यह खास मुश्किल नहीं है कि किसी ग्राम पंचायत के क्षेत्र या ग्राम पंचायतों के समूह के क्षेत्र में अपने धन तथा संसाधनों को केंद्रित करे और इस तरह चुनाव में स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल करे।
किझक्कम्बलम ग्राम पंचायत का यह उदाहरण इसकी अनिष्टकर संभावनाओं को दिखाता है कि किस तरह निजी कंपनियां, एनजीओ या कोई अन्य मंच खड़ा करने के जरिए चुनाव के माध्यम से ग्राम पंचायत पर नियंत्रण हासिल कर सकती हैं। याद रहे कि जंगलात के इलाके तथा अनुसूचित जाति के इलाकों में कोई औद्योगिक परियोजना लगाने के लिए ग्राम सभा की इजाजत हासिल करना कानूनन जरूरी है। इस तरह से ग्राम सभा पर ही कब्जा करना, इस एनओसी से निपटने का एक रास्ता हो सकता है।
इस प्रकरण से गंभीर सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या कारपोरेट खिलाड़ियों को किसी एनजीओ या दूसरे कठपुतली संगठन के माध्यम से चुनावों में उतरने की इजाजत दी जानी चाहिए? मांग उठ रही है कि इस मामले की गहराई से पड़ताल की जाए और पंचायत कानून में उपयुक्त प्रावधान जोड़े जाएं ताकि स्थानीय निकायों के कार्पोरेट टेकओवर (अधिग्रहण) को रोका जा सके। (लोकलहर से साभार)