देहरादून। उत्तराखंड में नए लोकायुक्त अधिनियम को लेकर अजीब स्थिति पैदा हो गई है। यह कड़क लोकायुक्त अधिनियम प्रदेश की कांग्रेस सरकार को कतई
प्रदेश में वर्ष 2011 में यह लोकायुक्त एक्ट भाजपा की तत्कालीन सरकार ने विधानसभा में पारित किया था। देश में सशक्त लोकपाल बनाने के लिए आंदोलन कर रहे अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल ने भी उत्तराखंड के लोकायुक्त अधिनियम की तारीफ की थी। गत तीन सितंबर को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 24 सितंबर को गजट नोटिफिकेशन भी जारी हो गया। जानकारों के अनुसार ऐसी स्थिति में यह अधिनियम अपने आप लागू समझा जाता है, लेकिन बहुगुणा सरकार एकाएक इसके विरोध में खड़ी हो गई है।
राज्य में अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या किसी अधिनियम को लागू करना या नहीं करना मुख्यमंत्री या सरकार के अधिकार क्षेत्र में है? विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए इस एक्ट को लागू किए जाने की जमकर पैरवी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि एक्ट लागू होने के बाद ही उसमें जरूरी संशोधन किया जाए। सरकार को समर्थन दे रहे विधायकों के साझा मंच पीडीएफ के रुख से भी इस मामले में सरकार की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। पीडीएफ अध्यक्ष मंत्री प्रसाद नैथानी भी नए लोकायुक्त एक्ट को भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी बता रहे हैं। हालांकि बसपा के कोटे से मंत्री बने सुरेंद्र राकेश विसंगतियों को संशोधित करने के बाद ही एक्ट को लागू करने की बात कह रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस में अंतर्विरोधों और सहयोगियों के जुदा रुख के बीच क्या इस एक्ट में संशोधन संभव हो पाएगा?
विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल कहते हैं, ‘राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह राज्य का अधिनियम बन गया है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकायुक्त बिल लागू किया जाना बेहद जरूरी है। लागू होने के बाद ही इसके फायदे व नुकसान सामने आएंगे। बाद में यदि जरूरत पड़ी तो इस अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है।’
शिक्षा मंत्री, मंत्री प्रसाद नैथानी का इस बारे में कहना है कि- ‘लोकायुक्त अधिनियम भ्रष्टाचार को रोकने वाला कानून है। निश्चित तौर पर इससे नेताओं व अफसरों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। समग्र रूप से यह अच्छा व जनता के हितों का संरक्षण करने वाला कानून है। इसमें संशोधन पर पीडीएफ का रुख क्या होगा, यह भविष्य का सवाल है। फिलहाल हम इसका अध्ययन कर रहे हैं।’
परिवहन मंत्री सुरेंद्र राकेश कहते हैं, ‘भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकायुक्त अधिनियम जरूरी है। इसमें जो भी विसंगतियां हैं, उन्हें दुरूस्त करने के लिए विधानसभा में संशोधन बिल लाया जाना चाहिए। संशोधन के बाद ही इस अधिनियम को प्रदेश में लागू किया जाना चाहिए।’
राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस केडी शाही का कहना है कि- ‘किसी भी अधिनियम को न्यायपालिका में चुनौती दी जा सकती है। विधायिका को भी कानून में संशोधन का पूरा अधिकार है, मगर कोई भी अधिनियम उसका गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बाद लागू हो जाता है।’
पूर्व विधायक एवं भाजपा नेता मुन्ना सिंह चौहान इस पर प्रतिक्रया देते हुए कहते हैं- ‘विधानसभा में पारित और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित बिल को संशोधित करने का अधिकार विधानसभा के पास है, मगर राज्य सरकार या उसके किसी नुमाइंदे के पास इसे असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल न्यायालय के पास है। लिहाजा, मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को याद रखना चाहिए कि अब वे न्यायाधीश नहीं हैं।’