शिमला। मंडियों में सेब के उचित दाम नहीं मिलने और बागवानों के प्रति सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के विरोध में हिमाचल प्रदेश संयुक्त किसान मंच ने सोमवार को सेब उत्पादक क्षेत्रों- शिमला, ठियोग, कोटखाई, जुब्बल, रोहड़ू, नारकंडा, रामपुर, किन्नौर, कुल्लू, आनी और करसोग आदि में खंड, तहसील, उपमंडल स्तर पर धरना प्रदर्शन किया और अधिकारियों के माध्यम से सरकार को ज्ञापन सौंपे।
किसान मंच ने बागवानों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को अल्टीमेटम दिया था, जिसकी अवधि पूरी होने पर यह रोष प्रदर्शन किया गया। मंच के संयोजक हरीश चौहान और सह संयोजक संजय चौहान ने सरकार को चेतावनी दी है कि बागवानों की मांगें शीघ्र नहीं मानी गई तो आने वाले समय में संघर्ष और तेज किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह मंच एक गैर राजनीतिक संगठन है, जिसे 22 से अधिक किसान- बागवान संगठनों का समर्थन मिल चुका है। इसलिए सरकार किसी गलतफहमी में न रहे।
शिमला में किसानों- बागवानों के विभिन्न संगठनों ने मिलकर शेर-ए-पंजाब से जुलूस निकालते हुए उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन किया और उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा। मंच के घटक सदस्य हिमाचल किसान सभा के महासचिव डॉ. ओंकार शाद ने इस अवसर पर आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार पूंजीपतियों के साथ साठ-गांठ करके किसानों को लूटने का काम कर रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
डॉ. शाद ने कहा कि सरकार की किसान-बागवान विरोधी नीतियों की वजह से प्रदेश की 5 हज़ार करोड़ की सेब की आर्थिकी को ग्रहण लग गया है। सरकार की नीतियों की मार सबसे ज्यादा छोटे बागवानों पर पड़ रही है। लागत मूल्य कई गुणा हो चुका है। दवाई, खाद, यातायात, भण्डारण, पैकेजिंग हर चीज़ के दाम बढ़ चुके हैं। खाद में नौ गुणा और दवाइयों में 20 गुणा तक की मूल्यवृद्धि हो चुकी है। सरकार बागवान को बचाने का काम करे न कि उजाड़ने का।
हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि भाजपा हमेशा एक देश एक विधान का राग तो अलापती है, मगर किसानों- बागवानों को समर्थन मूल्य देने में भेदभाव करती है। उन्होंने कहा कि जम्मू- कश्मीर में पिछले दो वर्षों से 60 रुपये, 44 रुपये और 24 रुपये के हिसाब से मण्डी मध्यस्थता योजना के तहत सेब की सरकारी खरीद हो रही है, जबकि हिमाचल में सरकार सिर्फ निम्न स्तर का सेब ही खरीदती है, जिसकी कीमत साढ़े नौ रुपये प्रति किलोग्राम तय की गई है। उस पर भी अफसोस की बात यह कि यह पैसा भी सरकार बागवानों को समय पर नहीं देती।
डॉ. तंवर ने कहा कि सब्ज़ी उत्पादक भी इसी तरह से खस्ता हालत में हैं। हर साल एक न एक सब्ज़ी का शून्य दाम मिलता है। टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च, बीन में कई बार इतना कम मूल्य मिलता है जिससे मण्डी तक पहुंचाने का खर्च भी पूरा नहीं पड़ता। बात- बात पर केरल से अपनी तुलना करने वाली हिमाचल सरकार को ज्ञात होना चाहिए कि केरल ने फल- सब्ज़ी के अपने 30 उत्पादों के लिए न्यूनतम खरीद मूल्य निर्धारित किया है, जिसका लाभ यह हुआ है कि केरल के किसान का उत्पाद अब मण्डी में भी अच्छे दामों में बिक रहा है। आढ़तियों को मजबूर होकर किसानों को सही दाम देना पड़ रहा है।
प्रदर्शनकारियों को जय किसान आन्दोलन के सचिव चमन राकेश आज़्टा ने भी सम्बोधित किया। सभी वक्ताओं ने कहा कि बागवानों की मुख्य मांगें कश्मीर की तर्ज पर मण्डी मध्यस्थता योजना के तहत ए, बी, सी ग्रेड के सेब का मूल्य करना, एपीएमसी कानून सख्ती से लागू करना, किसानों के उत्पाद की बिक्री का पैसा उसी दिन दिलवाना, आढ़तियों के पास फंसे बागवानों के पैसे का भुगतान करना, अडानी सहित सभी सीए स्टोर में निर्माण के समय की शर्तों के अनुसार बागवानों को 25 प्रतिशत सेब रखने का प्रावधान सुनिश्चित करवाना, किसान सहकारी समितियों को सीए सटोर बनाने के लिए 90 प्रतिशत देना, सेब व अन्य फलों एवं फूलों की पैकेजिंग में इस्तेमाल किए जा रहे कार्टन व ट्रे की कीमतों की गई वृद्धि को वापिस लेना, सूखा, ओलावृष्टि, बरसात व बर्फ से बर्बाद हुई फसलों के लिए मुआवज़ा देने, एचपीएमसी और हिमफेड द्वारा बीते वर्षों में खरीदे गए सेब का भुगतान तुरन्त कराना, खाद, बीज, कीटनाशकों, फफूंदनाशकों पर सब्सिडी बहाल करना और· कृषि उपकरणों एवं हेलनेट की बकाया सब्सिडी तुरन्त जारी करना आदि है।
प्रदर्शन में हिमाचल किसान सभा के राज्य कोषाध्यक्ष सत्यवान पुण्डीर, गोविन्द चतरान्टा, कृष्णानन्द, जयशिव ठाकुर, सुरेश, डॉ. रीना सिंह, सीमा चौहान, हिमी देवी, अनिल ठाकुर, गुलाब सिंह नेगी, अनिल पंवर, जगमोहन ठाकुर, सुनील वशिष्ठ, डॉ. विजय कौशल, पवन शर्मा, बलबीर पराशर सहित बड़ी अनेक किसानों ने भाग लिया।